Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[३४५]
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पनाक, भारंगी, मूर्वा, इन्द्रायण चिरायता और | नियमेन नरा निषेवितारो पलाशकी छाल २-२ पल, निसोत सबसे ३ गुना यदि जीवन्त्यजराःकिमत्र चित्रम् ॥
और इन सबके बराबर ब्राह्मी लेकर यथाविधि चूर्ण | त्रिफलाके चूर्णको खैर, और असन वृक्षकी बना लीजिए।
छालके काथको भावना देकर शहद और घीके __इसके सेवनसे सुप्ति (किसी अङ्गका शून्य साथ मिलाकर नियमपूर्वक सेवन करने वाले हो जाना) रोग नष्ट होता है।
मनुष्योंको मरणपर्यन्त वृद्धावस्था नहीं आती। (२३६३) त्रिफलाप्रयोगः (ग. नि. । चरा.) । (२३६६) त्रिफलायोगः ( यो. त.। त.७१) दुग्धेन त्रिफला पीता हन्ति चातुर्थिकं ज्वरम्। यस्वैफलं चूर्णमपथ्यवर्जी ___ दूधके साथ त्रिफला पीनसे चातुर्थिक सायं समश्नाति समाक्षिकाज्यम् । (चौथिया) ज्वर नष्ट होता है।
स मुच्यते नेत्रगतैविकारै-. (ज्वर आनेसे पहिले दिन १ से १॥ तोले । त्यैर्यथा क्षीणधनो मनुष्यः॥ तककी मात्रामें पीना चाहिए कि जिससे विरेचन __ जिस प्रकार धनहीन मनुष्यको उसके नौकर होकर कोष्ठ शुद्ध हो जाय ।)
छोड़कर चले जाते हैं, इसी प्रकार सायङ्कालके (२३६४) त्रिफलाप्रयोगः (यो. स.। समु. ६) | समय घी और शहदके साथ त्रिफला सेवन करने फलत्रिकं त्रिकटुकं भागी कुष्ठमुच्चटा।
और पथ्य पालन करने वाले मनुष्योंको नेत्ररोग एतानि सममात्राणि तावन्ति लवणानि च ॥ छोड़ जाते हैं। उष्णेन पयसा चूर्ण हिक्कावासहरं परम् ॥ (मात्रा-३ से ६ माशे तक । )
हर्र, बहेड़ा, आमला, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, | (२३६७) त्रिमदः ( भै. र. । परि.) पीपल ), भारंगी, कूठ और लहसन। समान भाग बिडङ्गमुस्तचित्रश्च त्रिमदःसमुदाहृतः ॥ तथा इन सबके बराबर पांचोलवण (सेंधानमक, बायबिडङ्ग, मोथा और चीतेके समूहको कालानमक, काचलवण, खारीनमक, सामुद्रलवण) 'त्रिमद' कहते हैं। लेकर चूर्ण बना लीजिए।
(२३६८) त्रिलवणादिचूर्णम् इसे गर्म पानीके साथ सेवन करनेसे हिचकी
(वृ. यो. त. । त. ९४; यो. र. । श.). और श्वास रोग नष्ट होता है।
लवणत्रयसंयुक्तं पञ्चकोलं सरामठम् । (मात्रा-१-१॥ माशा)
सुखोष्णेनाम्भसा पीतं कफशूलहरं परम् ।। (२३६५) त्रिफलायोगः (ग. नि. । रसा.) सेंधानमक, कालानमक, खारी नमक, पीपल, खदिरासनयूषभाविताया--
पीपलामूल, चव्य, चीता, सोंठ और भुनी हुई त्रिफलाया घृत्तमाक्षिकप्लुतायाः। । हींग समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। भा० ४४
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