Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
द्वितीयो भागः ।
गुटिकाप्रकरणम् ]
त्रिफला ३ भाग, अगर ५ भाग और पापल १ भाग लेकर चूर्ण करके गुड़ में मिलाकर गोलियां बना लीजिए | इनके सेवन से सूजन, पाण्डु और भगन्दर नष्ट होता है |
( गुड़ सबके बराबर लेना चाहिए। मात्रा १ तोला )
(२४०६) त्रिफलादिवटी
( आ. व. वि. । रसाय. अ. ८५ ) त्रिफलां पर्पट कहीं त्रायन्तों च समांशिकाम् । सर्वे समं कुपीलुश्च रक्तिद्वमिता वटी ॥ नाशयेच्छुक्रतारलं शं. घयेच्छाणितं भृशम् । हरेन्द्र शैथिल्यं बलं वह्निञ्च वर्द्धयेत् ॥
त्रिफला, पित्तपापा, कुटकी और त्रायमाणा का चूर्ण समान भाग तथा सबके समान शुद्ध कुचले का चूर्ण लेकर सबको पानी में घोटकर २-२ रत्तोकी गोलियां बना लीजिए ।
इनके सेवनसे शुक्र तारत्य दूर होता और रक्त शुद्ध होता है तथा अग्नि और शारीरिक बलकी वृद्धि होकर इन्द्रियोंकी शिथिलता नष्ट होती है ।
(२४०७ त्रिफलाद्या गुटिका ( ग. नि. । परि. गुटि . )
त्रिफलावदराणां स्याद् व्योषस्य च पलद्वयम् कर्पूरकर्षो लाजानां पलद्वादशक भवेत् ॥ एलात्वक्पत्रकानान्तु पलं स्वाद्वंशरोचना । पलाष्टिका वेतसश्च चतुष्पल उदाहृतः ॥ चूर्णाद् द्विगुणखण्डं स्याद् हया वमिहरा परम् यक्ष्माण रक्तपित्तश्च ज्वरं कासं च नाशयेत् ॥
।
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३५५ ]
त्रिफला, (हर्र, बहेड़ा, आमला ), बेर, और त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पापल) २ - २ पल ( १०१० तोल ); कपूर १ कर्ष ( १| तोला ), धानकी खील १२ पल, इलायची, दालचीनी और तेजपात १ - १ पल, बंसलोचन ८ पल, और अम्लवेत ४ पल लेकर सबका चूर्ण करें और उसे समस्त ओषधियोंस २ गुनी खांडकी चाशनी में मिलाकर गोलियां बनाएं।
इनके सेवन से वमन, राजयक्ष्मा, रक्तपित्त, खांसी और ज्वर नष्ट होता है । यह हृदय के लिए भी हितकारी हैं । त्रिफलाद्यावटका (ग.नि.; यो. र.; वं. से. । कु.) रसप्रकरण में देखिये | (२४०८) त्रिवृतादिगुटिका (भै.र.; वृ.नि. र.; वै. र.; ग. नि; वं. से.; र. र. । उदावर्त्त. )
कृष्णा हरीतक्यो द्विचतुःपञ्चभागिकाः । गुडिका गुडतुल्या सा विविबन्धगदापहा ॥
निसोत २ भाग, पीपल ४ भाग और हर्र ५ भाग | सबके महीन चूर्णको समान भाग गुड़ में मिलाकर गोलियां बना लीजिए ।
इनके सेवन से मलावरोध नष्ट होता है । ( मात्रा - १ तोले तक । अनुपान - उष्ण
।
जल | ) (२४०९) त्रिवृतादिमोदक : ( भै. र. | परि. ) त्रिवृतामृतां द्राक्षां जातीकोषफलेऽभयाम् । जीवन्तीं मधुरं श्यामामनन्तामिन्द्रवारुणीम् ॥ अब्द मन्दीवरं वह्नि मधुकं मागधीं मुराम् । afari चोरपुष्पीञ्च चन्द्रशूरच चन्द्रिकाम् ॥
For Private And Personal