Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तैलप्रकरणम् ]
द्वितीयो भाग:।
[ ३७७]
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(२४७०) तिलतैलादिप्रयोगः (यो.र.।स्त्री.रो.) मजीठ, कूठ, हल्दी, पंवाड़ और अमलतासके तिलतैलदुग्धफाणितदधि
पत्ते ५--५ तोले लेकर पीस लें फिर यह कल्क; घतमेकत्र पाणिना मथितम् । १। सेर सरसोंका तैल तथा ५ सेर गन्धतृण पीतं सपिप्पलीकं जनयति
(मिर्चिया गन्ध)का स्वरस एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पुत्रं परं महिला ।।
पर पकाएं। तिलका तेल, ध, फाणित (पतली राब), इस तैलकी मालिशसे कुष्ठ रोग नष्ट होता है। दही और घी समान भाग लेकर सबको हाथसे । (२४७३) त्रिकटुकाद्यं तैलम् भली भांति मथकर उसमें पीपलका चूर्ण मिलाकर (वं. से.; . मा.; ग. नि. । नासा.) पीनेसे बन्ध्या स्त्री गर्भ धारण करती और उत्तम त्रिकटुकविडङ्गसैन्धवहतीफलशिग्रुपुत्रको जन्म देती है।
सुरसदन्तीमिः। (२४७१) तुम्बीतेलम्
तैलं गोजलसिद्धं नस्यं स्यात् पूतिनस्यस्य । (भै. र.; योर.; . मा.; र. र.; वं. से. । गलगण्डा. त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), बायबिडंग, वृ. यो. त. । त. १०८. यो. त. । त. ५७ ) | सेंधानमक, कटेलीके फल, सहिजनेकी छाल, तुलसी विडङ्गक्षारसिन्धुत्थरास्नामिव्योषदारुभिः। और दन्तीमूलके कल्क तथा गोमूत्रके साथ तैल कटुतुम्बीफलरसे कटुतैलं विपाचितम् ॥ पका लीजिए। चिरोत्थमपि नस्येन गलगण्डं विनाशयेत् ॥ - इसकी नस्य लेनेसे पूतिनस्य रोग नष्ट
बायविडंग, जवाखार, सें नमक, रास्ना, होता है । (तैल १ सेर, गोमूत्र ४ सेर; समान चीता, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल) और देव- भाग मिश्रित और जलपिष्ट कल्क द्रव्य पावसेर।) दारुका कल्क २-२ तोले, सरसों का तैल ७२ । (२४७४) त्रिफलातैलम् (शा.ध.सं.ख.२अ.९) तोले, और कड़वी तूंबीका रस २८८ तोले लेकर त्रिफलारिष्टभूनिम्बं द्वेनिशे रक्तचन्दनम् । सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकाइये । एतैःसिद्धमरूंपीणां तैलमभ्यञ्जने हितम् ॥ जब सब रस जल जाय तो तैलको छान लीजिए। हर्र, बहेड़ा, आमला, नीमकी छाल, चिरा
इसकी नस्य लेनेसे पुराना गलगण्ड भी नष्ट यता, हल्दी, दारु हल्दी और लालचन्दनके कल्क हो जाता है।
और इन्हींके काथसे सिद्ध तैलकी मालिश करनेसे (२४७२) तृणकतैलम्
अरुषिका रोग (शिरोरोग विशेष) नष्ट होता है। (च. द; वं. से.; वृं. मा.; ग. नि.। कुष्ठा.; वृ. यो. | (कल्कके लिए प्रत्येक द्रव्य ५ तोले लेकर
त. । त. १२०) | पानीमें पीस लें। मञ्जिष्ठारुङनिशाचक्रमर्दारग्वधपल्लवैः । । काथके लिए प्रत्येक द्रव्य ४० तोले, पानी तृणकस्वरसे सिद्धं तैलं कुष्ठहरं कटु ॥ ३२ सेरः शेष ४ सेर । तेल २ सेर ।)
भा० ४८
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