Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
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(२३५७) त्रिफलादिचूर्णम् (वै. जी.। वि. ३) ३ ब्रह्म दिन (६००० दिव्ययुग) की आयु हो फलत्रयं छिन्नरुहा सचित्रा
| जाती है। रास्ना कृमिघ्नं सकटुत्रयश्च । । (२३६०) त्रिफलादिविरेचनम् (ग.नि.।ज्व.) चूर्ण समांशं सितया समेतं
चूर्णितैत्रिफलाश्यामा त्रिवृत्पिप्पलीकेसरैः। __कासं जयेन्नात्र विचारणीयम् ॥ सक्षौद्रःशहरायुक्तो विरेकस्तु प्रशस्पते ॥ हर बहेडा, आमला, गिलोय, मजीठ, रास्ना,
___ ज्वरमें विरेचन देनेके लिए त्रिफला, काला बायबिडङ्ग, और त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च और पीपल) । निसोत, सफेद निसोत, पीपल और नागकेसरके का समान भाग चूर्ण एकत्र मिलाकर उसमें सबके समान भाग मिश्रित चूर्णको मिश्री और शहद में बराबर मिश्री मिला लीजिए। इसके सेवनसे खांसी मिलाकर खिलाना चाहिए। अवश्य नष्ट हो जाती है ।
(मात्रा ६ माशेसे १ तोले तक ।) (मात्रा ३से ६ माशे तक। शहदमें मिला- । (२३६१) त्रिफलादीनां योगः (ग.नि.।मूर्छा.) कर दिनमें ३-४ बार चाटें ।)
फलत्रिकैश्चित्रकनागराढयै(२३५८) त्रिफलादिप्रयोगः (वं.से.। स्व.मे.) स्तथाऽश्मजाताञ्जतुनः प्रयोगैः। फलत्रिकत्र्यूषणयावशूक
सशर्मासमुपक्रमेत चूर्णश्च हन्यात्स्वरभेदमाशु ।
___ विशेषतो जीर्णघृतं सपाय्यः ॥ किम्वा कुलित्थं वदनान्तरस्थं
त्रिफला, चीता, सोंठ, और शिलाजीत १-१ स्वरामयं हन्त्यथ पौष्करम्बा ॥ भाग तथा खांड इन सबके बराबर लेकर चूर्ण त्रिफला, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल) और बना लीजिए। जवाखारके चूर्णको (शहदमें मिलाकर) चाटने या इसे १ मास तक पुराने घृतके साथ सेवन कुलत्थ अथवा पोखरमूलको मुखमें रखकर उसका करानेसे मूर्छा रोगका नाश होता है। रस चूसनेसे स्वरभंग रोग नष्ट होता है। (२३६२) त्रिफलाद्यं चूर्णम् (ग.नि. । चूर्णा.) (२३५९) त्रिफलादियोगः (र. र.र खं.। उप.५) त्रिफलातिविषाकटुका--- त्रिफला बाकुचीवीज पिप्पली चाश्वगन्धिका
निम्बकलिङ्गवचापटोलानाम् । सर्व तुल्यं कृतं चूर्ण मध्वाज्याभ्यां लिहेल्पलम् ॥ मागधिरजनीद्वयपाकवर्षान्मृत्युं जरां हन्ति जीवेब्रह्मदिनत्रयम् ॥ ___भार्गीमूर्वा विशालानाम् ॥
त्रिफला, बाबची, पीपल और असगन्धका । भूनिम्बपलाशानां दद्याद् द्वपलं त्रित्रिगुणा। समान भाग चूर्ण एकत्र मिलाकर १ पल (५ तोले) तैश्च समाना ब्राह्मी तचूण सुप्तिनुत् परमम् ॥ की मात्रानुसार घी और शहदके साथ नित्य प्रति । त्रिफला, अतीस, कुटकी, नीमकी छाल, १ वर्ष तक सेवन करनेसे जरामृत्युका नाश होकर इन्द्रजौ, बच, पटोलपत्र, पीपल, हल्दी, दारुहल्दी,
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