Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्ण प्रकरणम् ]
निसोत, दन्तीमूल, देवदाली (बिण्डालडोढा ) और जवासा । इनमें से किसी एक का भी चूर्ण पानी के साथ सेवन करनेसे सर्व प्रकार के जलोदर नष्ट होते हैं ।
द्वितीयो भागः ।
(२३७७) त्रिवृता दिशोधनम्
( वृ. नि. र. । विसप. ) वृद्धरीतकीभिर्वा विसर्पे शोधनं हितम् ॥ विसर्प रोगमें निसोत और हर्र, चूर्णको खिलाकर विरेचन कराना लाभदायक है । (२३७८) त्रुटयादि चूर्णम् (बृ.नि.र. | आमवा. ) त्रुटि लवङ्गविडङ्गकटुत्रिकं
घनशिवाशिवपत्रकं समम् । त्रिगुणितं त्रिवृता च सिता समा अदत आम पतिष्यति कामतः ॥ सफेद इलायची, लौंग, बायबिडंग, त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल), मोथा, हर्र, आमला और तेजपात १ - १ भाग तथा निसोत इन सबसे ३ गुना और मिश्री सब बराबर लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
इसके सेवन से आम निकल जाती है। (२३७९) त्र्यूषणादिचूर्णम्
।।
( च. सं. चि. अ. २० ) सत्र्यूषणं विल्वपत्रं पिवेन्ना कामलापहम् । दन्त्यर्द्धपलकल्कं वा द्विगुडं शीतवारिणा ॥ कामलौत्रतां वापि त्रिफलाया रसैः पिबेत् त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल ), और बेलके पत्तों का चूर्ण सेवन करनेसे अथवा आधापल (२|| तोले ) दन्तीमूलको पानी के साथ पीसकर दो गुने गुड़में मिलाकर ठण्डे पानी के साथ खाने से अथवा
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निसोत के चूर्णको त्रिफला काथके साथ पीने से कामला रोग नष्ट होता है ।
(२३८०) त्र्यूषणादिचूर्णम्
( ग. नि. वृं. मा. यो. र । अति.; हा सं. । स्था. ३ अ. ३ )
त्र्यूषणातिविषाहिङ्गवचासौवर्चलाभयाः । पीत्वाष्णेनाम्भसा हन्यादामातीसारमुद्धतम् ।।
त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), अतीस, हींग, बच, सौंचल ( कालानमक ), और हर्र के समान भाग मिश्रित चूर्णको गर्म पानी के साथ पीने से प्रबल आमातिसार नष्ट होता है ।
(२३८१) त्र्यूषणादिचूर्णम् (ग.नि. । उदर. ) त्र्यूषणं निचुलं दन्ती केशरं लवणत्रयम् । विशालां त्रिफलां दार्वी पटोलं चेति चूर्णयेत् ॥
मुखाम्बुनाथ सूत्रेण धात्रीफलरसेन वा । पीतमेतथादोषं प्लीहोदरहरं परम् ॥
त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल), समन्दरफल, दन्ती, नागकेशर, सेंधानमक, काला नमक, खारी नमक, इन्द्रायण, हरे, बहेड़ा, आमला, दारूहल्दी, और पटोलपत्र । समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
इसे दोषानुसार मन्दोष्ण जल, गोमूत्र या आमलेके रसके साथ सेवन करनेसे लीहोदर (तिल्ली) रोग नष्ट होता है ।
( नोट- वातज रोगों में गर्म पानीसे कफजमें गोमूत्रसे और पित्तज रोगों में आमलेके रसके साथ सेवन कराना चाहिए। मात्रा ३ माशे । )
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