Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३२०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि (२२२५) तिन्तिडीपानकम् (भै. र. । अरु.) | की छाल, मजीठ, खैरसार, और लाल चन्दनका भागास्तु पञ्च चिश्चायाःखण्डस्थापि चतुर्गुणाः। काथ पीने से भयङ्कर लसिकामेह, माञ्जिष्ठमेह, धान्यकाकयोर्भागं चातुर्जातार्द्धभागिकम ॥ | और अन्य उपद्रव युक्त प्रमेहोंका नाश होता है । द्विगुणं जलमेतेषामेकपात्रे विलोडितम् । (२२२७) तिलकाथ: पिहितन्तप्तदुग्धेन ततो वस्त्रपरिघुतम् ॥
| (वृ. नि. र.; वं. से., बूं. मा.; यो. र. । गुल्म; विधिना धूपिते पात्रे कृत्वा कपूरवासितम्।
वृ. यो. त. । त. ९८) नृपयोग्यमिदं पानं वेदयुक्त्या प्रयोजितम् ॥ तिलकाथो गुडघृतव्योषभामरजोन्वितः। इमलीका गूदा ५ पल, (२५ तोले ), खाण्ड
पीतो रक्तभवे गुल्मे नष्टे शुक्रे च योषितः ॥ २० पल, धनिया और अद्रक १-१ पल, चातु
___तिलके काथमें गुड़, घी और त्रिकुटे ( सोंड, र्जात (दालचीनी, इलायची, तेजपात और
मिर्च, पीपल) तथा भारंगीका चूर्ण मिलाकर नागकेसर) आधा पल और पानी ५५ पल लेकर,
पिलानेसे रक्त गुल्म और नष्टपुष्प ( रजोदर्शन न कूटने योग्य चीजोंका चूर्ण करके सबको मिट्टीके
होना) रोग मिट जाते हैं। पात्रमें पानीमें मिलाकर मथ डालिए। तत्पश्चात्
(२२२८) तिलादिकल्कः (वं. से. । अति.) उसमें थोड़ासा गर्म दूध मिलाकर कपड़ेमें छान । कल्कास्तलाना कृष्णाना शकरा पञ्चभागकः। लीजिए। अब इसमें तनिकसा कपूर मिलाकर आजेन पयसा पीतःसयो रक्त नियच्छति ॥ अगर इत्यादि से धूपित मिट्टी या पत्थरके पात्रमें १ भाग काले तिल और ५ भाग मिश्रीको भरकर रख दीजिए।
एकत्र पीसकर बकरीके दूधके साथ पीनेसे रक्ता___ यह पानक राजाओंके सेवन करने योग्य है। तिसार नष्ट होता है । इसके पीनेसे अरुचि नष्ट होती है।
(२२२९) तिलादिक्काथः (२२२६) तिन्दुकादिक्काथः । (वं. से. । अश्म.; वृ. यो. त. । त. १०२)
___ ( आ. वे. वि. । चि. अ. ६८) तिला पामार्गकदलीपलाश पववित्वजः। तिन्दुवित्वं विडङ्गश्च व्याघ्री धात्री च जाम्बपी। काथः पेयो विमूत्रेण शराश्मरिनाशनः॥ चब्बूलं लोहितश्चैव खदिरं रक्तचन्दनम् ।। तिल, चिरचिटा, केलेकी जड़, ढाक (पलाश) एषांकाथो हरेन्मेहान् लसिका सुदारुणम्। की छाल, जौ और बेलकी छाल को भेड़के मूत्रमें तथा मञ्जिष्ठमेहादिनानोपदवसंयुतम् ॥ पकाकर पीनेसे शर्करा और अश्मरी ( पथरी ) नष्ट
तिन्दु (तेन्दु ) की छाल, बेल छाल, बाय- होती है । अथवा इनके क्षारोंको भेड़के मूत्रके बिडंग, कटैली, आमला, नागदमन, बबूल (कीकर) | साथ पीनेसे भी पथरी नष्ट होती है।
१ क्षार इति पाठान्तरम्
For Private And Personal