Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[जकारादि
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( विधि-अपामार्ग की राख को १६ गुने । अथ जकाराद्यरित्रप्रकरणम पानी में घोलकर मोटे घने कपड़े में २१ बार टपका लीजिए । तत्पश्चात् १ सेर तेलमें ४ सेर यह जल
(२०६४) जीरकाद्योऽरिष्ठः (भै. र. । स्त्री.) मिलाकर पकाइये, जब पानी जल जाय तो ४ सेर जीरकस्य तुलाद्वन्द्वं चतुर्दाणे जले पचेत् । पानी और डाल दीजिए, इसी प्रकार सात बार
द्रोणशेषे क्षिपेत्तत्र तुलात्रयमितं गुडम् ।। पानी डालकर पकाइये।
धातकी पोडशपलां शुण्ठीश्च द्विपलोन्मिताम् । इस तैलमें झाग अधिक आते हैं इस लिए जातीफलं मुस्तकञ्च चातुर्जातं यवानिकाम् ॥ बड़े पात्रमें और मन्दाग्नि पर पकाना चाहिए। ककोलं देवपुष्पञ्च पलमानेन निक्षिपेत् ।। (२०६२) ज्योतिष्मतीतैलप्रयोगः मासं संस्थाप्य भाण्डे च मृत्तिकापरिनिर्मिते ॥
(यो. चि. । चूर्णा.) तत कल्कान् विनिहृत्य पाययेत् कर्षमात्रया। ज्योतिष्मत्यास्तैलमेकं पिबेच्च; अरिष्टो जीरकाद्योऽयं निहन्यात्मृतिकामयान् ॥ ___ गुञ्जाद्धया कर्षमात्रन्तु यावत् ।
ग्रहणीमतिसारश्च तथा वह्वेश्च वैकृतिम् ।। सौरे पर्वण्यम्बुमध्ये प्रविष्टः प्रज्ञामूतिर्जायतेऽसौ कवीन्द्रः॥
२ तुला ( १२॥ सेर ) जीरको कूटकर ४ १ रत्ती मात्रासे आरम्भ करके प्रतिदिन १
- द्रोण ( ६४ सेर ) जलमें पकाए, जब १ द्रोण १ रत्ती बढ़ाकर १ कर्ष (१। तोले ) की मात्रा
पानी शेष रहे तो उसमें ३ तुला गुड़, १६ पल तक पहुंचने तक ज्योतिष्मती (माल कंगनीका )
( १ सेर ) धायके फूलोंका चूर्ण २ पल सोंठका तैल पीनेसे बुद्धि अत्यन्त तीब्र हो जाती है।
चूर्ण, तथा १-१ पल (५-५ तोले ) जायफल, तेल पीनेके पश्चात् थोड़े समय तक नदी या
मोथा, दालचीनी, तेजपात, नागकेसर इलायची, तालाब के भीतर छाती से ऊंचे पानी में बैठना
अजवायन, कंकोल और लौंगका चूर्ण मिलाकर चाहिए।
मिट्टीके स्वच्छ और घृतसे चिकने किए हुवे पात्रमें (२०६३) ज्योतिष्मतीतैलप्रयोगः
भरकर, उसके मुखको शरावसे ढककर उस पर (यो. त.। त. ५२)
कपडमिट्टी करके रख दीजिए; और १ मास ज्योतिष्मत्याःपिवेत्तैलं पयसा च विरेचनम् ।
पश्चात् छानकर बोतलों में भर दीजिए। सर्वेभ्यो जठरेभ्यस्तु शीघ्रं मुच्येत मानवः॥
यह जीरकाचरिष्ट सूतिका रोग, संग्रहणी, दूधमें मिलाकर मालकंगनीका तैल पीनेसे
| अतिसार और जठराग्नि विकारोंको नष्ट करता है। विरेचन होकर समस्त उदररोग नष्ट हो जाते हैं।
मात्रा-१ कर्ष ( १। तोला । ) । ॥ इति जकारादितैलप्रकरणम् ॥
॥ इति जकाराधरिष्टप्रकरणम् ।।
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