Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
[जकारादि
घाव, और रगड़ इत्यादिको शीन आगम हो पीपल, चव्य, नीलो पल ( नीलोफर ) कृठ, मुलैठी, जाता है।
हल्दी, दारुहल्दी, मोथा, मुगन्धवाला, लोध, बड़के नोट-यह प्रयोग लाभग “जात्यादि घन" | अङ्कर, सिन्दूर और सोनागेरु। प्रत्येक का चूर्ण सं. २०३३ के समान ही है।
९.--९ माशे लेकर पानीमें पीस लें। तत्पश्चात् (२०५४) जात्याक्तिलम् (ग. नि.। उपदं.)
उपरोक्त रसों और इन सब चीजोंको ३ पाव (१ जातीपत्रं निशा दुग्धी विशाला मधु पष्टिका !
सेर ) तिल के तैलमें मिलाकर पकाएं । जब समस्त
काथ जल जाए तो छान लें । इसे लगानेसे समस्त पकनेभिर्यु तैलोतलेपो नरोगहा ॥
मुखरोग, भगन्दर, उपदंश और दुष्ट वा (धाव ) ___नमेली के पत्ते, हल्दी, दुधी, इन्द्रामगकी जड़
नष्ट होते हैं। और गुलै ।। प्रत्येक ४१ तोले लेकर पानीके
(२०५६) जात्यादितलम् (वृ.नि.र. भु.रो.) साथ पीस लें। तत्पश्चात् यह क-क (पिट्टी), १ सेर तैल और इन्ही चीजों का ४ सेर काथ एकत्र
जातीकरञ्जवरुणहरवीरारिपाचितम् । मिलाकर पकाएं | जब सब पानी जल जाप तो
लमभ्यञ्जनादन्ति इन्द्रलुप्तं न संशयः ॥ तेलको छान लें।
चमेली के पत्ते, करन के पत्ते, वरुण (बरने) इस तैलको लगानेसे उपदंश (आतशक) की छाल, कनेर की छाल और चीतामूल ४-४ रोग नष्ट होता है।
तोले लेकर पानी में पीस लें । तत्पश्चात् यह कल्क (२०५५) जात्यादितैलम् (भै. र. । उपदं.)
(पिसी हुई औपधे ), १ सेर तैल और ४ सेर
पानी को एकत्र मिलाकर पकाएं। जब सब पानी जातीपल्लवतोयेन शङ्खपुष्पीरसेन च ।
जल जाए तो तैलको हानकर रख लें। बकुलत्त्वकषायेण पवेत्तैलं तिलोद्भवम् ।।
इसकी मालिशसे इन्द्रला (गंज) रोग गायत्रीमाम्रवीजञ्च त्रिफलां कटुकत्रयम् । चव्यं नीलोत्पलं कुष्ठं मधु रजनीद्वयम् ॥
| अवश्य नष्ट होता है। मुस्त बालकं लोधं सिन्दूरं वणगैरिकम् ।
जात्यादितलम् (धन्वं. । व्रण.)
जात्य कल्कीकृत्य क्षिपेतत्र बटरोहमयो पि च ॥
जात्यादिघृतं सं. २०३२ देखिए जात्यायाख्यमिदं तैलं निखिलान्मुखजानादान । (२०५७) जारकतलम् भगन्दरोपदंशी च व्रणं दुष्ट निहन्ति च॥ (यो.र.। कु.; ग. नि. । तैल.; वृ. यो. त.।त. १२०)
चमेलीके पत्तोंका स्वरस १ सेर, शंखपुष्पी । जीरकस्य पलं पिष्ट्वा सिन्दूरार्द्रपलन्तथा। (शंखाहोली ) का स्वरस या काथ १ सेर, मौल- कटुतैलं पचेदाभ्यां सय पामाहरं परम् ॥ सिरीकी छालका काथ १ सेर, तथा खैर सार, वृद्धवैयोपदेशेन पाच्च तैलं पलाष्टकम् ॥ आमकी गुठली, हर्र, बहेड़ा, आमला. सोंठ, मिर्च, जीरा ५ तोले, और सिन्दूर २॥ तोले लेकर
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