Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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लेपप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[२७१
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जमाल गोटेकी गिरीको पानीमें पीसकर लेप अथ जकारादिधूम्रप्रकरणम् । करनेसे वृश्चिक दंश (बिच्छके डंक की पीड़ा (२०८३) जालादिधृम्र : (ग. मा. । पीन.) तुरन्त शान्त होजाती है।
जातीषाङ्कोलजटां सपत्र(२०८०) ज्योतिष्कबीजलेपः
मादाय तद्वन्महिषाक्षभागम् । ( वृ. नि. र.; यो. र. । अर्श.) दत्त्वा ततो नागवला सुयुग्म ज्योतिष्कबीजकल्केन लेपो रक्तार्शसां हितः॥
कासप्रशान्त्यै विदधीत धृमम् ।।
चमेली, बासा और अङ्कोलकी जड़ तथा मालकानीके बीजोंको पानी में पीसकर पत्ते और मैसिया गृगल १-१ भाग तथा नागभस्सोंपर लेप करनेसे रक्तार्श (खनी बवासीर) नष्ट
बला २ भाग । सबको मिलाकर कूटकर चिलममें होती है।
रखकर या अन्य विधिसे धूम्रपान करनेसे खांसी (२०८१) ज्योतिष्मत्यादिलेप (वं.से.। भगन्द.) नष्ट होती है। ज्योतिष्मती लाली च श्यामा दन्ती त्रिवृत्तिला। (२०८४ ) जात्यादिधूमः ( यो. र. । कास.) कुष्ठं शताहा गोलोमी मी शोधनमिष्यते ॥ जातीपत्रशिलारालैयोजयेद् गुग्गुलुं समम् । मालकंगनी, कलिहारी, काला निसोत, दन्ती,
अजामूत्रेण सम्पिष्टो धूमः कासहरः परः॥ सफेद निसोत, तिल, कूट, सोया, बच और
चमेलीके पत्ते, मनसिल, राल, और गूगल । मूर्वा । समान भाग लेकर पीसकर लेप करनेसे
समान भाग लेकर बकरीके मूत्रमें पीसकर चिलममें
| रखकर या अन्य किसी प्रकारसे उसका धूम्रपान भगन्दरका पाव शुद्ध होता है।
करनेसे खांसी नष्ट होती है। इति जकारादिलेपप्रकरणम्
(२०८५) जात्यादिधूम्रः ( यो. र.। कास.)
जातीजटाकिसलयैर्वदरीदलैश्च अथ जकारादिधूपप्रकरणम्।
जाता मसूरकफलैः समनःशिलैश्च । (२०८२ ) जम्वादि धूपः (वं. से. ।)
स्थाद्धमवर्तिरिह गुग्गुलुना समेतैः जम्बूधातकिपर्णैस्तद्भवकल्कैश्च धूपितो योनिः। कासच्छिदे बदरिकाग्निविदयमानैः ।। त्यजति समस्तविकारं जन्मान्तरसञ्चितश्चापि ॥ चमेलीकी जड़, चमेलीके पत्ते, बेरीके पत्ते,
जामन और धायके पत्तोंको पीसकर योनिको | मसूर और मनसिल तथा गूगल समान भाग ले उसकी धूप (धूनी) देनेसे पुराने विकार भी नष्ट हो कर बत्ती बनावें और उसे बेरी के कोयलों की जाते हैं।
अग्निपर जलाकर धूम्रपान करें। इससे खांसी नष्ट
होती है। इति जकारादिधूपप्रकरणम् ।
इति जकारादिधूम्रप्रकरणम्
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