Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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स्सप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[२९१]
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कटुत्रिकाङ्कोल्लकदेवदाल्य
औषधोंका चूर्ण मिलाकर ३ पहर तक अद्रकके रसमें स्त्रिभागिकाःस्युःपरिचूयं सर्वम्। घोटकर ३-३ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए । ततो रसैःशिग्रुदलोद्भवैस्तन्
इनमेंसे एक एक गोली अद्रकके रसके साथ मर्य द्विगुञ्जागुटिका विधेया॥ देनेसे नवीन ज्वर नष्ट होता है । देया समस्ते विषमे त्रिदोषे
(२१३८) ज्वरध्वान्तदिवाकरो रसः __ सद्यो ज्वरघ्नी हिमवालुमिश्रा।
(र. का. धे. । ज्वर.) __शुद्ध पारा और गन्धक १-१ भाग, गिलोय | पारदं गन्धकं तानं जैपालं त्रितां कणाम् । का घन ( काथको पकाकर गाढ़ा किया हुवा नलिकां कटुकी पथ्यां विषतिन्दुकवीजकम ।। सत्व ), शुद्ध मनसिल, शुद्ध बछनाग और अपरा- | समभागं समादाय सूक्ष्मचूर्णन्तु कारयेत् । जिता (कोयल)की जड़का चूर्ण २-२ भाग, तथा
वजीक्षीरेण सम्मय पश्चादुन्मत्तवारिणा ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, अंकोल और देवदाली (बिंडाल | आर्द्रकस्य रसेनैव श्लक्ष्णं गुञ्जाचतुष्टयम् । डोढे )का चूर्ण ३-३ भाग । -
नवज्वरे प्रयोक्तव्यो ज्वरध्वान्तदिवाकरः ॥ प्रथम पारे गन्धककी कजली बना लीजिए, आमान्तशोधनात् पश्चात् पथ्य मुद्गदिनहितम्॥ तत्पश्चात् उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, सहजनेके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां | शुद्ध जमालगोटा, निसोत, पीपल, उसारेबना लीजिए।
रेवन्द, कुटकी, हर और कुचला समान इनमेंसे १-१ गोली ( ४ रत्ती ) कर्परके भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बना साथ पीसकर ( ठण्डे पानी या शहदके साथ )
| लीजिए और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका महीन देनेसे सर्व प्रकारके विषमज्वर और त्रिदोषज्वर चूर्ण मिलाकर उसे थोहर ( सेंड )के दूध, धतरेके शीघ्र नष्ट होते हैं।
रस और अद्रकके रसमें पृथक् पृथक् १-१ दिन (२१३७) ज्वधूमकेतुः
घोटकर चार चार स्त्तीकी गोलियां बना लीजिए। ( र. सा. सं. । ज्वर.; रसें. चिं, म. । अ, ९, इनमेंसे १ गोली प्रातःकाल अद्रकके रसके भै. र.: र. चं. वै. क. द. र. का. धे. साथ देनेसे विरेचन होकर ज्वर नष्ट हो जाता है। भा. प्र. । ज्वर.)
जब विरेचनद्वारा आम (कफ) निकल जाय भवेत्सम सूतसमुद्रफेनं हिङ्गलगन्धं परिमर्थ यत्नात्। तो मुंगकी दाल और भातका पथ्य देना चाहिए। नवज्वरेवल्लमितं त्रिघरमार्दाम्बुनायं ज्वरधूमकेतुः (२१३९) ज्वरनागमयूरचूर्णम् (भै.र.।ज्व.)
शुद्ध पारा,समन्दर झाग,शुद्ध हिंगुल, और शुद्ध लोहाभ्रटङ्गनं तानं तालकं वङ्गमेव च। गन्धक समान भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी शुद्धसूतं गन्धकश्च शिग्रुवीजं फलत्रिकम् ॥ कलली बना लीजिए, तत्पश्चात् उसमें अन्य । चन्दनातिविषा पाठा वचा च रजनीद्वयम् ।
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