Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[ ३०९] खानेसे अजीर्ण, अतिसार, ग्रहणी, अग्निमांद्य, कफ, | ज्वालालिङ्गो रसो नाम त्रिदोषां ग्रहणीञ्जयेत्। हृल्लास ( जी मिचलाना ), वमन, आलस्य और निहन्ति ग्रहणीरोगं साध्यासाध्यं न संशयः॥ अरुचिका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है।
रस सिन्दूर, सोनेकी भस्म, मरिचका चूर्ण (व्यवहारिक मात्रा-आधा माषा) और तुत्थ भस्म समान भाग लेकर सबको ज्वाला(२१८१) ज्वालालिङ्गरसः
मुखी, चीता और जलमुण्डी के रसमें एक एक (र. का. धे. । अ. १; र. रा. सुं. । उत्तर.) | दिन घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। शुद्धं मूतं मृतं स्वर्ण मरिचं तुत्थकं समम्।
इनमेंसे १-१ गोली खाकर ऊपरसे १ तोला ज्वालामुख्यमिजैवर्जलमुण्डितिकाद्रवैः ।।
चीतेकी जड़को तक्रमें पीसकर पीनेसे त्रिदोषज दिनैकं मर्दयेत्खल्वे गुञ्जामानं च भक्षयेत्।।
| संग्रहणी नष्ट होती है। ज्वालालिङ्गो रसो नाम त्रिदोषेदीयते सदा॥ ककं वहिमूलन्तु तक्रेण च पिबेदनु॥ इति जकारादिरसप्रकरणम् ।
अथ जकारादिकल्पप्रकरणम् । (२१८२) ज्योतिष्मतीकल्पः बनस्पति है; इसकी लता पीले रंगकी होती है
(र. र. स. । उ. खं. अ. २६) और उसपर सुन्दर पीले रंगके ही फल आते हैं । ज्योतिष्मती नामलता पीता पीतफलोज्ज्वला। अषाढके प्रथम पक्षमें उसके उत्तम बीज आषाढे पूर्वपक्षे स्याद् गृहीत्वा वीजमुत्तमम् ।। लेकर तिलोंकी भांति उन्हें कोल्हूमें पिलवा कर आहरेत्तिलवत्तैलं मुष्टिना वापि तत्पचेत् । अथवा कूटकर मुट्ठीसे निचोड़कर उनका तेल निकक्षीरतुल्यं चतुर्थशमाक्षिकं तैलशेपितम् ॥ लवाना चाहिए । इस तैलको समान भाग दूध ततस्तत्कोलकर्पूरत्वग्जातीफलमिश्रितम्। । और चतुर्थांश मधुमें मिलाकर तैलमात्र शेष रहने स्निग्धभाण्डगतं धान्येष्वनुगुप्तं निधापयेत् ॥ तक मन्दाग्नि पर पकाइये और फिर उसमें थोड़ा पिबेत्सूर्योदये तैलात्पलं याति विसंज्ञताम्। थोड़ा कंकोल, कपूर, दारचीनी और जायफल ततः संज्ञां शनैर्लब्ध्वा ततःक्रन्दति रोदिति॥ का चूर्ण मिलाकर मिट्टीके चिकने पात्रमें ( अथवा एवं मासे श्रुतधरः परस्मिन्सूर्यसनिमः। कांच या चीनी आदिकी बरनीमें ) भरकर मुख तृतीये पूज्यते देवैश्चतुर्थे नैव दृश्यते ॥ बन्द करके अनाजके ढेर में दबा दीजिए। (२१
खेचरःपञ्चमे षष्ठे सिद्धैमिलति सप्तमे। दिन पश्चात् निकालकर' काममें लाइये ।) विष्णोसमदिन जीवेज्जीवनमुक्तोऽष्टमे भवेत्॥ इसमेंसे ५ तोले तैल सूर्योदयके समय पीना __ ज्योतिष्मती (माल कंगनी) लता जाति की । चाहिए । इसके पीनेसे मनुष्य बेहोश हो जाता
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