Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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सुहागेको एक दिन काञ्जी में भिगोकर छाया में सुखा लीजिए। इसके पश्चात् उसे एक एक दिन मनुष्यके मूत्र और गोमूत्र में भिगोकर (छाया में सुखाकर ) जम्बीरी नीबूके रसमें डाल दीजिए, और एक दिन पश्चात् निकालकर नारयलके पात्र में ( नरेली में ) रखकर थोड़ासा स्याह मिर्चका चूर्ण मिलाकर ठण्डे पानीसे धो डालिए । इस प्रकार सुहागा शुद्ध हो जाता है । इसे सर्वत्र प्रयुक्त कर सकते हैं ।
भारत
- भैषज्य रत्नाकरः ।
सुहागा अग्निवर्द्धक, रूक्ष, कफनाशक, रेचक और लघु है ।
ग्रन्थिकं दहनमूलसमेतम् ॥ एकशश्च पलिकैरिह वै
मर्दितं सुवलितं गुरुहिकाम् । श्वासकासमुदरं चिरमेहान् पाण्डुरोग यकृतीगलरोगान् ॥
इति टकारादिमिश्रमकरणम् ।
(२२०६) डामरेश्वराभ्रम् (भै. र. । हिक्का.) मेचकं पलमितं मृतमभ्रं ब्रह्मयष्टिकनकामृतवासाः । कासमर्दवननिम्बकचव्यं
[टकारादि मिश्रमकरणम्
(२२०५) टिण्डुकादिपुटपाकः x (हा. सं. । स्था. ३ अ. ३ ) टिण्डुकत्वचमाहृत्य काश्मीरीपत्रवेष्टितम् । मृदा विलिप्य विधिवद्दन्मृद्वनिना भिषक् ॥
गृहीत्वा मधुसंयुतं पानं सर्वातिसारन्नश्च ॥ सोनापाठा ( श्योनाक ) वृक्षकी छालको कूटकर खम्भारीके पत्तोंमें लपेटकर सुतलीसे बांध दीजिए फिर उसके ऊपर मिट्टीका १ अंगुल मोटा लेप करके मृद्वग्नि ( भूबल ) में दबा दीजिए । मिट्टीका रंग लाल हो जाय तो भीतरसे छालको निकालकर रस निचोड़ लीजिए ।
इस रसमें शहद डालकर पीने से सर्व प्रकार के अतिसार नष्ट होते हैं ।
अथ डकारादिरसप्रकरणम् ।
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शोथमोहनयनास्यजरोगं यक्ष्मपीनसगरं बलसादम् । गण्डमण्डल व मिभ्रमदाहं प्लीहशुल विषमज्वरकृच्छ्रम् ॥ हन्ति वातकफपित्तमशेषं द्वन्दरोगमनुपान विशेषैः ।
डामेश्वरमिदं महदभ्रं
पूर्ववैयगदितं सुखहेतु || ५ तोले कृष्णाभ्रक भस्म तथा ५ तोले
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