Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रेसप्रकरणम् ] द्वितीयो भाग ।
[ ३०१] (२१५७) ज्वराङ्कशः (१)
धत्तुरपत्रैरपिधाय सम्यक् ( शा. सं. । ख. २. अ. १२; वृ. नि. र.; पुटेत्पुटे कुक्कुटनामधेये । र. चं.; र. का. धे. । ज्व.; र. प्र. सु. । अ. ८) शीते स्वतो जात गुणप्रकर्षों खण्डितं मृगशृङ्गं च ज्वालामुखिरसैःसमम्। ज्वराङ्कुशोऽयं सितया प्रदेयः ।। रुध्वा भाण्डे पचेच्चुल्यां यामयुग्मं ततो नयेत्॥ शीते ज्वरे मङच बहुपकारी अष्टांशं त्रिकटुं दद्यानिष्कमात्रं च भक्षयेत् । दुग्धोदनं पथ्यमुषन्ति वैयाः॥ . नागवल्या रसैःसार्ध वातपित्तज्वरापहम् ॥ . अयं ज्वराशो नाम रसः सर्वज्वरापहः॥ अर्थ-शुद्ध मैनशिल और शुद्ध हरताल
मृगशृंगके छोटे छोटे टुकडोंको एक हाण्डीमें और शुद्ध गन्धक इन चारोंकी कजली करके भरकर उसमें ज्वालामुखोका रस इतना भर दीजिए मन्दारके (आकके) दूधमें घोटकर पिट्टी करलें फिर कि जिससे वह सींगके टुकड़ोंसे १ अंगुल ऊपर तूतिया से निकाले हुए शुद्ध ताम्बेके पत्रोंको रहे । अब इस हण्डी के मुखपर कपर |
| पिढीके बीचमें रखकर गोला बनालें । उस गोलेके मिट्टी करके सुखाकर चूल्हे पर चढ़ा दीजिए
ऊपर धतूरेके पत्ते लपेटकर सात कपडमिट्टी करके और दो पहर तक अग्नि जलाकर स्वांग शीतल
कुक्कुट पुटमें हांडीके सम्पुट में रखकर फूंकदें । होने पर हाण्डीके भीतरसे औषधको निकालकर
जब स्वाङ्ग शीतल हो जाय तब यह ज्वराङ्कुश पीसकर उसमें उसका आठवां भाग त्रिकुटेका चूर्ण
तैयार होता है । इसको मिश्रीकी चाशनीके साथ मिलाकर घोटकर सुरक्षित रखिए ।
देनेसे शीत ज्वर शीघ्र शान्त होता है । इसके इसमेंसे नित्य प्रति ४ माशे रस नागरबेलके
ऊपर दृध भातका पथ्य है। इसमें जितने ताम्बेके
पत्र लिए जायं उनसे दुने मैनसिल आदि चारों पानके रसमें मिलाकर चाटनेसे वातपित्तज तथा
पदार्थ लें, अर्थात् शुद्ध किए हुए ताम्बेके पत्र अन्य समस्त ज्वर नष्ट होते हैं ।
यदि आध पाव ( १० तोले ) हों तो मैनशिल ( व्यवहारिक मात्रा आधेसे १ माशा तक )
आदि चारों वस्तुएं १-छटांक (५ तोले ) (२१५८) ज्वराङ्कशरसः (२)
रहें । यदि रस बनने पर ताम्रपत्र कुछ ( रसायनसार. । चि. ) कच्चे निकले तो फिर उनको मंदारके दृधमें घुटी शुद्धे शिलाले रसगन्धको च
हुई पिढीके अन्दर रखकर पूर्ववत् फूंक दो फिर मन्दारदुग्धेन करोतु पिष्टिम् । सब रसको कृट कपड़छन कर रख छोड़ो । तुत्थोत्थताम्रस्य दलानि मध्ये निधाय तत्र प्रविधाय गोलम् ।।
( रसायनसारसे उद्धृत) १-कहीं कहीं इसका नाम ज्वालामुखीरस' भी लिखा है। .
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