Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[ ३०५] (२१७०) ज्वरारिरसः (१)
तीत्र विषमज्वर, चातुर्थिक, तृतीयक, द्वयाहिक ( शा. सं. । खं. २, अ. १२) और दैनिक ज्वर नष्ट हो जाते हैं। पारदं रसकं तालं तुत्थं टङ्कणगन्धके । (२१७१) ज्वरारिरसः (२) सर्वमेतत्समं शुद्ध कारवेल्या रसैदिनम् ॥
(धन्वं., भै. र.; र. र. । ज्व. ) मईयेल्लेपयेत्तेन ताम्रपात्रोदरं भिषक। - दरदवलिरसानां शुल्वनागाभ्रकाणाम्। अङ्गुल्यर्धप्रमाणेन ततो रुद्ध्वा च तन्मुखम् ॥ ! सुभगविडशिलानां सर्वमेकत्र योज्यम् । पचेत्तं बालुकायन्त्रे क्षिप्त्वाधान्यानि तन्मुखे। विपिननृपदलोत्थैः भावयेत्शोषयेत्तम् यदा स्फुटति धान्यानि तदा सिद्धं विनिर्दिशेत् ॥ दिवसदशसमाप्तौ वर्तिका कारणीया ।। ततो नयेत स्वाङ्गशीतं ताम्रपात्रोदराद भिषक। एकैकां भक्षयेदस्य आर्द्रकस्य रसैयुताम्। रसं ज्वरारि नामानं विचूप मरिचैःसमम् ॥
। दत्तमात्रो ज्वरं हन्ति ज्वरारिः स निगद्यते । माकं पर्णखण्डेन भक्षयेन्नाशयेज्वरम । सर्वशूलविनाशी च कफपित्तविनाशनः ।। त्रिदिनैर्विषमं तीवमेकद्वित्रिचतुर्थकम् ॥
(सर्व आरग्वधपत्ररसेन दशदिनं भावयित्वा शुद्ध पारा, शुद्ध खपरिया, शुद्र हरताल,
गुञ्जाप्रमाणमाईकरसेन देयम् ।) शुद्ध तुत्थ, सुहागेकी खील, और शुद्ध आमलासार
शुद्ध शिंगरफ, गन्धक, पारा, ताम्रभस्म, गन्धक समान भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर
सीसा भस्म, अभ्रक भस्म, सुहागेकी खील, विडकजली बना लीजिए और फिर उसे १ दिन
नमक और शुद्ध मैनसिल समान भाग लेकर प्रथम करेलेके रसमें घोटकर पीठी (लुगदी) बना लीजिए;
पारे गन्धककी कजली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य और तांबेके पात्रमें इसका आधा अंगुल मोटा लेप
ओषधियोंका महीन चूर्ण मिलाकर दस दिन तक
अमलतासके पत्तोंके रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी करके उसके मुखपर शराव ढककर सन्धिको
गोलियां बनाकर सुखाकर रखिए । अच्छी तरह बन्द कर दीजिए. और फिर इसे .
इनमेंसे प्रतिदिन प्रातः सायं १-१ गोली बालकायन्त्रमें पकाइये।
। अद्रकके रसके साथ देनेसे ज्वर तुरन्त नष्ट हो जब बालुकायन्त्रके रेत पर धान इत्यादि जाता है। इसके अतिरिक्त यह ' ज्वरारि रस' डालनेसे उसकी खील हो जायं तो अग्नि लगानी सर्व प्रकारके शूल और कफ तथा पित्तको भी बन्द कर दीजिए और यन्त्रके स्वांगशीतल होने शान्त करता है। पर ताम्रपात्रमेंसे रसको निकाल कर पीस कर रख (२१७२) ज्वरारिरसः (३) लीजिए।
(र. चं.; र. रा. सुं. । ज्व. ) इसमेंसे १ रत्ती रस १ माशा मरिचके रसगन्धककासीसत्यूषणातिविषाऽभयाः। चूर्णके साथ पानमें रखकर खिलानेसे ३ दिनमें चम्पकत्वक् च सर्वाणि यवतिक्तारसैदिनम् ।।
१ शुद्धनागाभ्रकाणामिति पाठान्तरम् । मा० ३९
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