Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[२६४]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[जकारादि
(२०४८) जम्वाद्यं तैलम्
अथवेदं च गृह्णीयात् तैलविन्दुचतुष्टयम् । (भा. प्र. । म. खं.; वं. से. । उपदंश)
निराकुलं सुख कुर्यात्तथा सारयति ध्रुवम् ॥
___ कूपिका यन्त्र द्वारा अथवा पाताल यन्त्रद्वारा जम्बूवेतसपत्राणि धात्रीपत्रं तथैव च ।
जमाल गोटेके नवीन बीजोंका तैल निकाल लीजिए नक्तमालस्य पत्राणि तद्वत्पद्मोत्पलानि च ॥
अथवा, उनकी गिरी निकालकर उसे पानीमें पकाएला चातिविषाम्रास्थि मधुकश्च प्रियङ्गवः।
इये और पानी पर जो तैल नितर आए उसको लाक्षा कालीयकं लोधं चन्दनं त्रिताहया॥
किसी पक्षीके पर आदि से सावधानीपूर्वक उठा एतान्येकीकृतान्येव बस्तमूत्रेण पेषयेत् ।
लीजिए । ध्यान रखना चाहिए कि कहीं आंखको अक्षमात्रैरिमैद्रव्यैौलप्रस्थं विपाचयेत् ॥
न लग जाए। सर्वत्रणहरं तैलमेतत्सिद्धं विपाचयेत् ।। उपदंशहरं श्रेष्ठं मुनिभिः परिकीर्तितम् ॥
इस तैलकी चार बंदें मन्दोष्ण (कुछ
गर्म) पानीमें डालकर पीने और फिर गर्म स्थानमें जामन, बेत, आमला, करन, कमल और
बैठने तथा बारबार पान खाने से वेगपूर्वक विरेचन उत्पल (नीलोफर) के पत्र, इलायची, अतीस, .
होकर कोष्ठ शुद्ध हो जाता है। आमकी गुठली, मुलैठी, फूल प्रियङ्गु, लाख, अगर, लोध, सफेद चन्दन, और निसोत। एक एक कर्ष
(२०५०) जातिपत्रादि तैलम्
(वं. से; वृ. नि. र.; . मा.; । कर्ण; वृ. (१।-१। तोला) लेकर सबको बकरेके मूत्रमें पीस
यो. त. । त. १२९) लीजिए; फिर इन्हें १ सेर तैल और ४ सेर पानी
जातीपत्ररसे तैलं विपकं पूतिकर्णजित् । में एकत्र मिलाकर पानी जलने तक पकाइये।
___ चमेलीके पत्तोंके रसमें उससे चौथाई तैल तत्पश्चात् छान लीजिए।
मिलाकर पकाएं। इस तैलको लगानेसे सर्व प्रकारके व्रण (घाव) इस तैलको कानमें डालनेसे 'पृतिकर्ण' रोग और विशेषतः उपदंश (आतशक) के धाव नष्ट | नष्ट होता है। होते हैं।
(२०५१) जात्यादितैलम् (ग. नि. । तैला.) (२०४९) जयपालतैलम् (र. चिं.।स्त. १०) नवपत्राङ्कराजाती द्वे हरिद्रे शतावरी । वीजानि जयपालस्य समाहृत्य नवानि च। जीवकर्षभको रास्ना सरलं देवदारु च ॥ कूपिकायन्त्रयोगेन तैलं निःसार्य नीयते ॥ मुस्तातालीसमञ्जिष्ठापाठावरुणचित्रकाः । पातालयन्त्रयोगेनाऽऽथवा काथ्यगृह्यते।। | कुब्जं सर्वसुगन्धं च मधुकं द्वे च सारिवे॥ कदुष्णवारिणा पश्चात्क्षणं स्थिखा निपीयते ॥ अनन्ताऽऽमल कं मूर्वा मधुकं करवीरकम् । उष्णस्थाने स्थितः स्वच्छे बहुताम्बूलभक्षणम्। देवपुष्पं शिरीषस्य मूलं स्योनाकमेव च ॥ कुरुते सारयेदेतत्सुवेगेन न संशयः ॥ || चव्यं लाक्षा पयस्या च कलकीकृत्याक्षसम्मितान
For Private And Personal