Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[२२०.]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
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तोड़कर उसकी गरदनमें और चारों ओर लगे हुवे नोट २–जब तक शीशीमें से पीले रंगका अत्यन्त रक्तवर्ण रसको निकाल लीजिए। धुंवा निकलता रहे तब तक उसका मुंह बन्द न
१ पल (५ तोले ) यह रस, ४ पल कपूर, करना चाहिए, जब धुवां निकलना लगभग बन्द और जायफल, मिर्च, और लौंगका चूर्ण तथा | हो जाय तब शीशीके मुंहमें खिडिया मिट्टी या कस्तूरी ५-५ माशालेकर भली भांति एकत्र घोटिए। मुलतानी मिट्टी आदि का डाट लगा देना चाहिए। इसीका नाम “ चन्द्रोदय" है। किसी किसी शीशीको यन्त्रसे निकाल कर उसके ऊपरकी कपर' ग्रन्थमें इसका नाम “ मकरध्वज' भी लिखा है। मिट्टी को चाकूसे खुरच. कर उसे भीगे कपड़ेसे. ___इसे १ माशे ( या २-३ रत्ती) की मात्रा- पोंछ कर साफ़ करना चाहिए और फिर उसे जिस नुसार पानमें रखकर खानेसे मनुष्यमें सैकड़ों स्थानसे तोड़ना हो उस जगह मिट्टीके तेल मदोन्मत्त प्रमदाओंके गर्वको नष्ट करनेकी शक्ति | (घासलेट ) में भीगा हुवा डोरा बांधकर उसमें आ जाती है। . ..
आग लगा देनी चाहिए जब डोरा जल जाय तो इसके सेवनसे बली ( शरीरकी झुर्रियां ) शीशीको भीगे कपड़े से पोंछ दीजिए, वह वहीं से पलित (बालोंका सफेद होना) आदि रोगोंका टूट जायगी, इस प्रकार शीशी तोड़नेसे औषधमें नाश होता और आयु वृद्धि होती है। कांचके टुकड़े मिलनेका भय नहीं रहता। __ जो इस रसको सेवन करते हैं वह रति शीशी के गलेमें चन्द्रोदयकी गुल्ली (पिण्ड) समयमें बहुतसी स्त्रियोंको प्रसन्न कर सकते हैं। लगा हुवा मिलता है तथा शीशीकी दीवारोंमें भी इसे रतिकालमें या समागमके अन्तमें सेवन करनेसे थोड़ा बहुत चन्द्रोदय जमा रहता है, उस सबको शक्तिका ह्वास नहीं होता और नित्य प्रति सेवन सावधानीपूर्वक छुड़ा लेना चाहिए। शीशीकी करते रहनेसे सैकड़ों स्त्रियोंके साथ रमण करनेकी तलीमें थोडीसी सफेद रंगकी राखसी मिलती है, शक्ति प्राप्त होती है।
यह सोनेकी कच्ची भस्म होती है, इसे विधिपूर्वक ___चन्द्रोदयको एक वर्ष तक नित्य सेवन | पुट देनेसे स्वर्ण भस्म बन जाती है, अथवा सुहागे करनेसे शरीरमें ऐसी शक्ति आ जाती है कि फिर आदिके साथ मूषामें रखकर तीब्राग्नि देनेसे पुनः उस पर स्थावर और जङ्गम विष, और विषैले सोना जी उठता है । यदि पूरी सावधानी रक्खी जलका प्रभाव नहीं होता।
जाय तो प्रायः सबका सब सोना निकल आता है। नोट-दक्षिण देश वासी वैद्य इसे लाल । चन्द्रोदयके पिण्डके ऊपर पीले रंगकी गन्धक कपासके फूलोंके रसमें धोटकर बनाते हैं और जमी हुई हो तो उसे चाकूसे खुरचकर अलग पश्चिम प्रान्तवासी वैद्य लाल कपासके फूल डाल- रखना चाहिए और दम, खांसी, रक्तविकार तथा कर ही पतला होने तक घोटते हैं । इन दोनों ही मस्तक शूलादिमें व्यवहृत करना चाहिए। --- विधियों में कोई दोष नहीं है।
1. यदि शीशीकी तस्लीमें, अधपकी. कज्जुली सह.
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