Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[२२२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[चकारादि
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चपल पारदके बांधनेमें उपयोगी होते हैं और दशमूल, पीपल, आमला, बायबिडंग और सफेद दूसरे दोनों प्रकारके अनेक प्रयोगोंमें उपयुक्त जीरा आधा आधा भाग और सोंउ २ भाग लेकर होते हैं।
सबको ३-३ दिन तक भांगरे और मुण्डीके रस ___ चषल ( जो सोनामक्खीकी कानसे निकलने | तथा चन्दनके क्वाथमें घोटिए तत्पश्चात् उसे चिकनी वाली धातु है ) वृष्य और दोषनाशक है। मिट्टीसे निर्मित सम्पुटमें बन्द करके एक पुट
चूंकि यह धातु वङ्गके समान शीघ्र (चपलता- दीजिए और फिर पीसकर चनेके बराबर गोलियां से ) पिघल जाती है इसी लिए इसको चपल बना लीजिए। कहते हैं।
इसके सेवनसे 'चर्मकुष्ठ रोग नष्ट होता है। . चपल स्फटिक मणिके, समान उज्ज्वल, । (१९१२) चर्मभेदीरसः । षट्पहलू या तीनपहलू वाला, चिकना और भारी (र. का. थे.; र. रा. सु. । क.) होता है। यह तीनों दोषोंका नाश करता है, शुद्धभुतं द्विधा गन्धं मृतांश मृतशुल्वकम् । अत्यन्त वृष्य और पारदको बांधनेमें उपयोगी है। मूतपादं विषं चूण्य पचेयावद् द्रुतं भवेत् ॥ किन्ही आचार्योने चपलकी गणना उपरसोंमें
लोहपात्रे घृताभ्य के पातयेत्कदलीदले । और किन्हींने रसोमें की है।
| अभावाद्वा पुटे स्निग्वे हयादाप भावयेत् अहम्।
| बाकुच्युत्थेन तैलेन निष्कपादं प्रभक्षयेत् । चपलको विष, उपविष और कांजीके साथ घोटकर अन्धमूषामें बन्द करके धमानेसे उसका सत्व
त्रिफला बाकुचीबीजं खदिरं राजवृक्षकम् ॥ निकल आता है।
मूलचूर्ण घृतं क्षाद्रं कर्फकमनुपायये ।
चर्मभेदी रसो नाम मण्डलाचर्मकुष्ठनुत् ।। (१९११) चर्मकुठाररसः (र. का. धे. । कु.)
शुद्ध पारद १ भाग, शुद् गन्धक २ भाग, शुद्धमूतं द्विधा गन्धं मृतं तीक्ष्णं रसाञ्जनम् । ताम्रभस्म १ माग, और चौथाई भाग शुद् बछ गन्धतुल्यं मृतं तानं रसस्पाई द्विपञ्चकम् ॥ नाग (मीठा तेलिया) लेकर कजली बनाइये कणाधात्रीविडङ्गश्च सितजीरकसंयुतम् । तत्पश्चात् उसे घृतसे चिकने किए हुवे लोहपात्र गन्धकेन समा शुण्ठी सवै भृङ्गाम्बुमर्दितम्॥ में मन्दाग्नि पर पिघलाकर केलेके पत्ते पर ढालकर तिलपतिमुण्डीनां स्वरसैर्भावयेत् व्यहम्। विधिवत् पर्पटी बना लीजिएं । और फिर उसे ३ शिवा स्निग्ध पुटे पकं पिण्डितं चणकोपमम् ।। दिन तक बाबचीके तैलमें घोट लीजिए। रसश्चर्मकुठारोयं भक्षितश्चर्मकुष्ठनुत् ॥२४२ । यदि केला न मिल सके तो किसी अन्य
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक, तीक्ष्ण वृक्षके चिकने और चौड़े पत्ते पर ढालकर पर्पटी लोहभस्म, रसौत, और ताम्रभस्म २-२ भाग तथा | बनानी चाहिए।
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१ पर्पटी बनानकी विधि "सपर्पटी में देखिए.
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