Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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त-भैषज्य -
[ २४८ ]
कर्पूरं चाभया धात्री मरिचं पिप्पली शुभा । एषामक्षसमान् भागान् चातुर्जातकसंयुतान् ॥ पलानि त्रीणि भृङ्गायाः शर्करा समयोजिता एतच्चूर्ण तु मधुना कर्षा लेहयेत्तथा ॥ जयेत्कासं क्षयं श्वासं ग्रहणीमग्निमार्दवम् । वातश्लेष्मोद्भवांश्चान्यान् प्रतिश्यायमरोचकम् ।। एताः सर्वा रुजो हन्ति वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ॥
भारत
जायफल, बायबिड़ङ्ग, चीता, तगर, तिल, तालीसपत्र सफेद चन्दन, सोंठ, लौंग, कलौंजी, कपूर, हर्र, आमला, स्याह मिर्च, पीपल, बंसलोचन, दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेसर १ - १ कर्ष ( १ - १ तोला ) दारचीनी ३ पल (१५ तोले) और मिश्री सबके बराबर मिलाकर महीन चूर्ण बना लीजिए ।
इसे प्रतिदिन आधे कर्षकी मात्रानुसार शहद में मिलाकर चाटने से खांसी, क्षय, श्वास, ग्रहणी, अग्निमांद्य तथा वातकफज अन्य रोग और जुकाम तथा अरुचिका शीघ्र ही नाश हो जाता है। (२०००) जीरकयोगः (बृ. नि. र. । ज्वर.) जीरकं गुडसंयुक्तं विषमज्वरनाशनम् । अग्निमान्धं जयेच्छतं वातरोगहरं परम् ||
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जीरे चूर्णको गुड़ में मिलाकर सेवन करने से विषमज्वर, अग्निमांद्य, शोत और वातज रोगों का नाश होता है ।
(मात्रा ३ माशे)
(२००१) जीरकादिचूर्णम् (यो.र. तृष्णा. छर्दि. जीरकुस्तुम्बरी द्राक्षा चन्दनोत्पलशीतलम् । शीतलेन समं दद्यात् तृष्णां हन्त्यतिशीतलम् ||
- रत्नाकरः
[ जकारादि
जीरा, कुस्तुम्बुरु ( नैपाली धनिया ), द्राक्षा (मुनक्का) सफेद चन्दन, नीलकमल और कपूर समान भाग लेकर चूर्ण करके शीतल जल के साथ सेवन करनेसे तृष्णा शान्त हो जाती है । (२००२) जीरकादि चूर्णम् ( वृ. नि. र. यो. र; | तृष्णा. ) सजीरधान्यार्द्रकगृङ्गवेरसौवर्चलान्यर्धपरिष्ठतानि । मयानि यानि च गन्धवन्ति
पीतानि यः शमयन्ति तृष्णाम् ॥ जीरा, धनिया, अद्रक, सोंठ, और काला नमक समान भाग लेकर चूर्ण करके (१ से ३ माकी मात्रानुसार) दो गुने, उत्तम हृदयके लिए हितकारी और सुगन्धित मद में मिलाकर पीनेसे तृष्णा तुरन्त शान्त हो जाती है। (२००३) जीरकादि चूर्णम्
( वृ. नि. र. यो. र. । ज्वर. ) जीरकं लशुनं व्योषं पाठा पिट्वोष्णवारिणा । शीतज्वरस्यागमने पिवेद्गुयुतेन च ।
जीरा, लहसन, सों, मिर्च, पीपल, और पाठा समान भाग लेकर चूर्ण करके गुड़में मिलाकर शीत ज्वर आने के पूर्व गर्म पानी के साथ खानेसे जर रुक जाता है ।
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जीरकादिचूर्णम् (भै. र. । ग्रह.) प्रकरण में देखिए ।
(२००४) जीर्णचेली भस्मप्रयोगः
( वैद्य. म. र. । प० १ ) जीर्णचेलभसितं पिवेद्वधूपुष्पजातरुधिरेण पीडिता ।