Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[ १८२ ]
( सतौना की छाल), सज्जीखार और माल कंगनी समान भाग लेकर इनके कल्कसे तैल पका लीजिए ।
यह तैल बार बार भगन्दर पर लगाने से भगन्दरका घाव शुद्ध होकर भर जाता है और त्वचा का रंग पूर्ववत् हो जाता है ।
(कककी सब चीजें समान भाग मिली हुई पावसेर तैल १ सेर पानी ४ सेर मिलाकर मन्दाग्नि पर पकाएं। ) (१८०७) चित्रकाद्यं तैलम् (ग.नि, अजीर्णा. ५) चित्रकं तिलपिण्याकं कुष्ठं भल्लातकानि च । द्वौ क्षारौ सैन्धवं चैभिस्तैलं शुक्ते विपाचयेत् ॥ एतेन मर्दनं कार्य प्रदेहश्चैव शस्यते । अतिप्रवृद्धं शूलं च भक्षणादेव नाशयेत् ॥
चीतेकी जड़की छाल, तिलकी खल, कूड, भिलावा, सज्जीखार, जवाखार और संवा । इनके कल्क और शुक्त (काञ्जीभेद ) के साथ पकाये हुवे तैलकी मालिश करने और प्रदेह लगाने से हैज़ेका अत्यन्त प्रवृद्ध शूलभी नष्ट हो जाता है ।
(कल्क द्रव्य समान भाग मिश्रित 5 | काञ्जी s ४ तैल s१)
(१८०८) चित्रकाद्यं तैलम् (ग.नि. । तैला. ५) चित्रकं मदनं पीलु शृङ्गवेरं शुकाननाम् । स्रोतोजं सैन्धवं दन्ती हरितालं मनः शिलाम् || तालीसं करवीरस्य मूलं लाङ्गलिकां वचाम् । भद्रकं क्षीरिकाञ्चैव स्वर्णक्षीरों च पेषयेत् ॥ नुक्षीरकुडव पाच्यमाने प्रदापयेत् । सूत्रे चतुर्गुणे तैलं कमर्शोहरं भवेत् ॥ क्षारकर्मकरं ह्येतदभ्यङ्गात्तैलमुत्तमम् ॥
चीतेकी छाल, मैनफल, पीलु, अदरक, शुक्र नासा, सौवीराञ्जन, सेंधानमक, दन्तीमूल, हरताल, मनसिल, तालीसपत्र, कनेरकी जड़, कलिहारीकी
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ चकारादि
जड़की छाल, बच, नागरमोथा, खिरनी वृक्षकी छाल और स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी) । इनके कल्क और सेहुंड (सेंड) तथा आकके १-१ कुडव (२०–२० तोले) दूध तथा ४ गुने गोमूत्रके साथ तैल पका लीजिए । यह तैल अर्शको नष्ट करनेके लिए अत्युत्तम है, तथा इसकी मालिशसे ही क्षारकर्म भी सिद्ध हो जाता है ।
(कल्क द्रव्य समान भाग मिश्रित । तैल s१, सेहंडका दूध और रस हरेक s । गोमूत्र S४) (१८०९) चुक्रादितैलम् (च.द.यो.र. । विषूची.) कुष्ठसैन्धवयोः कल्कं चुक्रं तैलसमन्वितम् । विषूच्यां मर्दनं कोष्णं खल्लीशूलनिवारणम् ॥
कू और सेंधेके कल्क तथा चुक्र (सिर्के) से सिद्धतैल को मन्दोष्ण करके मालिश करनेसे विशुचिकामें होने वाली हाथ पैरोंकी एंगुन जाती रहती है। (१८१०) चुक्रादितैलम्
( यो. र. । विपूची.; वै. र. । अग्निमा; यो त. त. । २०; बृ. यो त । त. ७१) पलं चुक्रं कुष्ठं पिचुयुगमितं सैन्धवकणे । तदर्ध प्रत्येकं करतलमितं जातिफलकम् ।। कटोस्तैलं पक्कं कुडवमितमग्नावधिभूतम् । तदेतच्चुक्रायं शमयति विश्र्चीं च सगदम् ॥
सिर्का ५ तोले, कूठ २ || तोले, सेंधा १ । तो. पीपल १। तो. और जायफल १। तो. । इनके क कसे १ कुडव (२० तोले) कड़वा तैल पका लीजिए। यह तैल उपद्रवयुक्त विषूचिका का नाश करता है ।
नोट- पाकके समय १ सेर पानी भी डालना चाहिए ।
For Private And Personal