Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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द्वितीयो भागः ।
अञ्जनप्रकरणम्
तेजपात, इलायची, नागकेसर ) का धूम्रपान करने या काले जीरेका चूर्ण सूंघने से प्रतिश्याय (जुकाम) नष्ट होता है I
॥ इति चकारादिधूम्रप्रकरणम् ॥
अथ चकाराद्यञ्जन प्रकरणम् । (१८४६) चतुर्दशाङ्गीवति (ग. नि. । नेत्र.) मधुकरसाञ्जनताम्रत्रिकटुविडङ्गपुण्डरीकाणि । सलवणतुत्थ त्रिफलाप्राणि नमोऽम्बुपिष्टानि ॥ वर्त्तिश्चतुर्दशाङ्गी नयनामयनाशिनी शिलास्तम्भे लिखिता हिताय जगतस्तिमिरापहा विशेषेण ।
मुलैठो, रसौत, तात्र भस्म, सोंठ, मिर्च, पीपल, बायबिडंग, कमल, सेंधा, नीलाथोथा, हर्र, बहैड़ा, आमला और लोत्र समान भाग लेकर महीन चूर्ण करके, आकाशजलमें पीसकर बत्तियां बना लीजिए ।
यह नेत्र रोग और विशेषतः तिमिर नाशक 'चतुर्दशाङ्गवर्तिः' शिलास्तंभ पर लिखी हुई मिली है। (१८४७) चन्दनाञ्जनम् (वं. से. । नेत्र. ) सलिलमकरन्दसर्पिस्तैलैः प्रत्येकमस्तु सप्ताहम् । विनिहन्ति तिमिरम चिरादञ्जनतश्चन्दनं रक्तम् ।।
लाल चन्दनको पानी, शहद, घी या तैलमें घिसकर अञ्जन लगानेसे सात दिनमें तिमिर रोग नष्ट हो जाता है ।
[ १९१ ] सफेद चन्दन १ भाग, सेंधा नमक २ भाग, हर्र ३ भाग और ढाकका गोंद ४ भाग लेकर महीन चूर्ण कर लीजिए ।
इसे आंख में लगाने से शुक्र और अर्मादि नेत्र विकार नष्ट होते हैं । (१८४९) चन्दनादिवर्तिः
(सु. सं. । उ. त. अ.१२ ) चन्दनं कुमुदं पत्रं शिलाजतु सकुङ्कुमम् । अवस्ताम्ररजस्तुत्यं निम्वनिर्यासमञ्जनम् ॥ पुकांस्वमलं चापि पिट्वा पुष्परसेन तु । विपुलायाः कृतावर्त्यः पूजिताश्चाञ्जने सदा ॥ स्वादञ्जनं घृतं क्षौद्रं सिरोत्पातस्य भेषजम् ॥
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सफेद चन्दन, कमलपुष्प, तेजपात, शिलाजीत, केशर, लोह चूर्ण, ताम्र चूर्ण, नीला थोथा, नीमका सार शुद्ध सीसा, कांसीका मैल | सबको महीन पीसकर शहद में मिलाकर बत्तियां बना लीजिए । इनको अथवा शहद और घीको आंख में आंजने से शिरोत्पात रोग नष्ट होता है । (१८५०) चन्दनादिवर्तिः ( र. र.;
भै. र-; वं. से.; धन्वं.; वृं. मा. । नेत्ररो. ) चन्दनत्रिफलापूगपलाशतरुशोणितैः । पिष्टैरियं कृतावर्त्तिरशेषतिमिरापहा ॥
कफेद चन्दन, हर्र, बहेड़ा, आमला, सुपारी और ढाकके गोंदको महीन पीसकर गोलियां बना लीजिए ।
इन्हें आंखों में आंजने से हर प्रकारका तिमिर रोग नष्ट होता है ।
(१८४८) चन्दनादिचूर्णाञ्जनम्
( वृ. मा.; वं. से. । नेत्र. ) 1 चन्दनं सैन्धवं पथ्या पलाशतरुशोणितम् । क्रमवृद्धमिदं चूर्ण शुक्रार्मादिविलेखनम् ॥
१ मधुनाञ्जनयोगाः स्युश्चत्वारः शुक्रनाशना इति पाठान्तरम्
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