Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ १९७]
अथ चकरादिरसप्रकरणम् * (१८६७) चक्रिकाबन्धरसः
(र. चं.; र. र. स. । स्त्रीचि.) (१८६५) चक्ररसः (भे. र.; र. रा. मुं.। ज्वर०) गन्धकःपलमात्रश्च पृथगक्षौ शिलालको। शम्भोःकण्ठविभूषणं समरिचं तालं तथा पारदम्। त्रिदिनं मर्दयित्वाऽथ विदध्याकजलीशुभाम॥ देवीबीजयुतं सुशोधितमिदं जैपालबीजोत्तमम् ॥ विषाणाकारमपायां कज्जली निक्षिपेत्ततः । दन्तीमूलयुतं समागधिफलं सर्व समांशं नयेत्। द्विपलस्य च ताम्रस्थ तन्मुखे चक्रिकां न्यसेत् ॥ तत्सर्व परिमय चाकरसैः गुञ्जाप्रमाणं रसम्॥ सन्निरुध्यातियत्नेन सन्धिबन्धे विशोषिते । दद्यात्योरतरे त्रयोदशविधे दोषे च चक्राहयम् । ततःकरिपुटार्धन पाकं सम्यक प्रकल्पयेत् ।। तन्द्रादाहसमन्विते च तृपया सम्पीडिते मानवे।। स्वत शीतं समुद्धत्य चक्रिका परिचूर्णयेत् ।
शुद्ध मीठा तेलिया, स्याह मिर्च, हरताल, स्थापयेत्कूपिकामध्ये वस्त्रेण परिगालितम् ॥ पारद, गन्धक, शुद्र जमाल गोटा, दन्ती मूल रसोऽयं चक्रिकाबन्धस्तत्तद्रोगहरौषधैः । और पीपलका चूर्ण समान भाग लेकर अद्रकके
दातव्यःशूलरोगेषु मूले गुल्मे भगन्दरे ॥ रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये।
ग्रहण्यामग्निमान्ये च विद्रधी जठरामये। इसे घोर तर १३ प्रकारके सन्निपातों में
नागोदरे तथैवोपविटके जलकूर्म के ।
सन्देनामन्दकृपया त्रैलोक्यत्राण हेतवे । तथा तन्द्रा, दाह, और तृषा युक्त सन्निपातमें उचित
चक्रिकाबन्धनामाऽयं प्रसूत स्त्रीगदापहः॥ अनुपानके साथ सेवन कराना चाहिये।
गन्धक १ पल ( ५ तोले ), मनसिल और (१८६६) चक्राख्यरसः (र. सा. मं । अर्शक )
हरताल २॥-२॥ तोला, लेकर ३ दिन तक घोट मृतमूताभ्रवैक्रान्त ताम्र कांस्यं समं समम् ।।
कर कजली बना लीजिये । अब. इस कज्जलीको सर्वतुल्येन गन्धेन दिनं भल्लातकै वैः ।।
सांगके आकारकी मृषा में भरकर उसके मुखपर मईये यत्नतः पश्चावटों कुर्याद्विगुञ्जिकाम् । , २ पल ( १० तोले ) शुद्ध ताम्रका ढक्कन लगाभक्षणाद् गुदजान्हन्ति द्वन्द्वजान्सर्वजानपि।
कर सन्धिको गुड़ और चूनेसे अच्छी तरह बन्द पारद भस्म (अभावमें रस सिन्दूर ), अभ्रक कर दीजिये और उस पर कपड़मिट्टी करके सुखा भस्म, वैक्रान्त भस्म, ताम्र भस्म, और कांसी भस्म एक लीजिये, एवं उसे अर्द्ध गजपुटमें फूंक दीजिये । एक भाग तथा सबके समान शुद्ध गन्धक लेकर | स्वांग शीतल होने पर ताम्र चक्रिका ( तांवे के सबको एक दिन पर्यंत भिलावेके काथमें घोटकर ढकन ) को पीसकर कपडेसे छानकर शीशीमें दो दो रत्ती की गोलियां बना लीजिये।
भरकर रख लीजिये। इनके सेवनसे द्विदोषज और सन्निपातज इसे शूल. गुल्म, अर्श, भगन्दर, · संग्रहणी, ववासीर नष्ट होती है।
| अग्निमांद्य, विद्रधि, उदर रोग, नागोदर ( गर्भ
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