Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ १९० ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि (१८३९) चित्रकादिलपः (. मा., बृ. नि. अथ चकारादिधूपप्रकरणम् । र. । श्लो.)
(१८४३) चातुर्थिकज्वरे धृपः हितश्च लेपने नित्यं चित्रको देवदारु च।
(रा. मा. । अपस्मा.) सिद्धार्थ शिग्रुकल्को वा सुखोष्णो मूत्रपेपितः॥
कृष्णाम्बरग्रथितगुग्गुलुघूकप:स्लीपद रोगमें चीतेकी जड़ और देवदारु को | मिश्रीकृतो हरति तत्क्षणमेव धूपः। अथवा सरसों और सहजनेकी छालको गोमूत्रमें चातुर्थिकज्वरमनल्पदिनोपगूढ । पीसकर मन्दोष्ण लेप करना हितकारक है। - सर्वाङ्गमप्यहिमरश्मिरिवान्धकारम् ।। (१८४०) चित्रकादिलेपः (वृ. नि.र.। त्व.दो.) गूगल और उल्टके पंखको काले कपड़ेमें मण्डलानि च घृष्टवाथ चित्रकेन प्रलेपयेत् ।। बांधकर धूनी देनेसे पुराना चातुर्थिक (चौथिया) ततो वातारिबीजैश्च लेपो मण्डलकुष्ठनुत् ॥ वर तत्काल नष्ट हो जाता है ।
मण्डल (चकतों) को (अरने उपलेसे) घिस- (१८४४) चिश्चादिवर्तिधूपः (वै.म.र.|पट.३ ) कर उनपर चीतेका लेप कर दीजिए और जब वह चिश्चात्वगेका द्वि निशा त्रि सर्जकपुनर्नवा। सूख जाय तो उसे उतारकर अरण्डीके बीजोंका नव जातिदला वत्तिःकास जित् बाह्यधृपिता॥ लेप कर दीजिए । इससे वह नष्ट हो जाते हैं ।
| इमलीकी छाल १ भाग, हल्दी २ भाग, (१८४१) चिरबिल्वादिलेपः (शा.सं.अ.११) राल ३ भाग, पुनर्नवा १ भाग और चमेलीके पत्ते चिरबिल्बोनिको दली चित्रको हयमारक। । ८ भाग लेकर कूटकर बत्ती बनाकर उसे जलाकर कपोतकङ्कगृध्राणां मलं लेपेन दारणम् ।। ८३ ॥
( नासिकाके पास ) धूनी देनेसे खांसी नष्ट हो
जाती है । - करञ्जकी गिरी, भिलावा, दन्ती, चोता,
॥ इति चकारादिधूपप्रकरणम् ॥ कनेरकी जड़, तथा कबूतर, कवे और गीधकी बीटको पीस कर लेप करनेसे ब्रण फूट जाता है।
। अथ चकारादिधूम्रप्रकरणम् । (१८४२) चुञ्चूफललेपः (ग. नि. । नाडीत्र.)
(१८४५) चातुर्जातधूम्रपानम् पिष्टं चुचूफलं लेपान्नाडीव्रणहरं परम् ॥
( भा. प्र. । म. ख. । नासा.) चुञ्चुके फलोंको पीसकर लेप करनेसे नाही प्रतिश्याये पिबेद्धमं सर्वगन्धसमायुतम् । ब्रण (नासूर) नष्ट होता है ।
चातुर्जातकचूर्ण वा घेयं वा कृष्णजीरकम्॥ ॥ इति चकारादिलेपप्रकरणम् ॥ ____ सर्वगन्ध (चातुर्जातक, कपूर, कंकोल, अगर,
| केसर, लौंग ) अथवा चातुर्जातक ( दालचीनी,
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