Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[१८८]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
___ लाल चन्दन, मुलैठी, लोध, चमेलीके पत्ते लाल चन्दन, मजीठ, कूठ, लोध, फूलप्रियङ्गु, और गेरु समान भाग लेकर ( पानी या इमलीके बड़के अङ्कुर और मसूरको पानीमें पीसकर लेप रसमें ) पीसकर आंखोंके पेवटों पर लेप करनेसे लगानेसे व्यङ्ग (चहेरेकी झाई-स्याही) नष्ट होकर नेत्रोंकी दाह, तोद ( सुई चुभनेकी सी पीड़ा) भुखकी कान्ति बढ़ती है।
और अभिष्यन्द ( आंखें आ जाना ) रोग नष्ट (१८३२) चन्दनादिलेपः (च.स.चि.स्था.अ.४) होता है।
भद्रश्रियं लोहितचन्दनञ्च (१८२९) चन्दनादिलेपः (वं. से. । शिरो.) |
प्रपुण्डरीकं कमलोत्पलश्च । भद्रश्रियं पुण्डरीकं मधुकं नीलमुत्पलम् । उशीरवाणीरजलं मृणालं पमकं वेतसं दूर्वा लामज्जकमथापि वा। सहस्रवीर्या तृणशून्यमृद्धिः॥ दावर्वीहरिद्रा मञ्जिष्ठा फेनिलोशीरमेव च।
मूलानि पुष्पाणि च वारिजानाम् एतदालेपनं कुर्याच्छङ्खस्य प्रशान्तये ॥
प्रलेपनं पुष्करिणीमृदश्च । ___ सफेद चन्दन, कमलपुष्प, मुलैठी, नीलोफर, उदुम्बराश्वत्थमधूकरोधाः । पाक, अम्लवेत, दूर्वा, (दूबड़ा घास), लामजक
कषायवृक्षाःशिशिराश्च सर्वे ॥ (खसभेद), दारु हल्दी, मजीठ, रीठा और खस प्रदेहकरके परिषेचनेन समान भाग लेकर पीसकर लेप करनेसे शङ्खक तथावगाहे घृततैलसिद्धौ। रोग नष्ट होता है।
रक्तस्य पित्तस्य च शान्तिमिच्छन् (१८३०) चन्दनादिलेपः (वं. से. । दाह.)
भद्रश्रियादीनि भिषक् प्रयुज्यात् ॥ श्लक्ष्णवृक्ष्मकृतो लेपश्चन्दनस्थापि दाहनुत् ।
सफेद चन्दन, लाल चन्दन, प्रपौण्डरीक खग्जातस्योष्मणो रोधाच्छीतकृतमथागुरु॥
| (पुण्डरिया), कमलपुष्प, नीलोफर, खस, बेत, नेत्रचन्दनको अत्यन्त महीन पीसकर लेप करने
बाला, कमलनाल, शतावर, केतकीका फूल, और
ऋद्भिः तथा जलमें उत्पन्न होने वाले पौदोंके पुष्प से दाह शान्त होती है । अगरको शोतल जलमें
औरमूल, पुष्करणी (कमलपुष्प वाले तालाव) की पीसकर लेप करनेसे भी दाह शान्त हो जाती है,
मिट्टी, गूलर, पीपल, महुवा, लोध और कषाय क्यों कि इसके लेपसे त्वचामें उत्पन्न होने वाली
(कसैले) वृक्षोंकी छाल और अन्य शीतल औषधोंका उष्णता रुक जाती है।
लेप लगाने, उनके शीतल क्वाथकी धार देने, कल्क (१८३१) चन्दनादिलेपः
सेवन करने और उनके शीतल काथमें अवगाहन ( वा. भ. उ. स्था. । अ. ३२)
(डुबकी लगाकर स्नान) करने एवं इनके कल्क रक्तचन्दनमञ्जिष्ठा कुष्ठरोधप्रियङ्गवः।..... और क्वाथसे सिद्ध घृत या तैलको प्रयुक्त करनेसे वटाङ्कुरा मसूराश्च व्यङ्गन्ना मुखकान्तिदा ॥१० रक्तपित्त नष्ट होता है ।
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