Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ १७२ ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
___ चीता, त्रिकुटा, सेंधा नमक, कलौंजी, शालपी, पृष्टपणी, कटेली, कटेला, गोखरु, चव, अनारदाना, अजवायन, पीपलामूल, जीरा, खम्भारीकी छाल, राना, अरण्डमूल, निसोत, हाऊवेर और धनिया । इनके कक तथा दही, खरैटी, मूर्वा, और शतावरी । प्रत्येक औषध २-२ काञ्जी और वेरीकी जड़के स्वरसके साथ पकाया
पल ( १०-१० तोले ) लेकर १६ गुने पानीमें हुवा घृत पीनेसे गुल्म, मन्दाग्नि, अफारा और
पकाकर चौथा भाग शेष रहने पर उस क्वाथ और शूल नष्ट होता है।
कल्याण घृतोक्त (इन्द्रायग, त्रिफला, रेणुका. (१७८२) चित्रकोत्थितं धृतम्
देवदारु, एलवा, शालपगी, तगर, हन्दी. दारुहल्दी, (वं. से.; च. द.। शो.; च, सं.।चि. स्था,अ, ८) क्षीरं घटे चित्रककल्कलिप्ते
सफेद और कृष्ण सारिवा, फूलप्रियङ्ग, नीलकमल, दध्यागतं साधु विमथ्यते च ।
इलायची, मजीठ, दाती, अनार, केसर, तालीसपत्र, तज्जं घृतं चित्रकमूलगर्भम्
बड़ी कटैली, चमेलीके ताजे फूल, बायबिडंग, तक्रेण सिद्धं श्वयथुनमग्र्यम् ॥
पृश्निपर्णी, कूट, सफेद चन्दन और पाकके ) अर्थोऽतिसारानिलगुल्ममेहां
ककके साथ वृत पका लीजिए। चैतनिहन्त्यग्निवलप्रदश्च ।
यह " चैतसवृत "समस्त मानसिक विकारों तक्रेण वाऽद्यात् सघृतेन तेन ( उन्मानादि )को नष्ट करनेके लिए अत्युत्तम है। भोज्यानि सिद्धामथवा यवागुम् ।।
( इसमें क्वाथसे चौथा भाग धृत और घृतसे एक घड़े में चीतेको पीसकर लेप कर दीजिए. चतुर्थांश कल्क लेना चाहिए। और उसमें दूध भरकर जमा दीजिए, जब दही
(मात्रा-६ मासे १ तो० तक । अनुपान जम जाय तो उसे मथकर घृत निकाल लीजिए।
| गर्म दूध या गर्म जल । ) . इस घृतको चार गुने तक और चतुर्थांश चीतेकी जड़के क-कसे सिद्ध कर लीजिए।
- (१९८४) चैतसघृतम् - यह घृत शोथ, बवासीर, अतिसार, वाय. (व. से. । उन्माद: ग. नि. । परि, घृता.) गुल्म और प्रमेहका नाश तथा अग्नि प्रदीप्त करता है। श्यामा मधुरसा रास्ना देवदारु शतावरी ।
उपरोक्त दहीके धृतयुक्त तक्रसे यवागु इत्यादि श्वदंष्ट्रा दशमलञ्च तैर्युक्त्या काथकल्कितैः॥ आहार पदार्थ बनाकर खिलानेसे भी लाभ होता है। साधितश्चैतसं नाम घृतं चेतोविकारनुत् । (१७८३) चैतसघृतम्
उन्मादमदमच्छीयां ज्वरापस्मारभेषजम् ।। (वं. से.; च. द.; यो. र. ।उ माद;.यो.त.।त.८८).
काला निसोत, मूर्वा. रास्ना, देवदारु, शतापञ्चमूल्या च काश्मर्यो रास्नैरण्डत्रिवृद्धला।
वर, गोखरु और दशमूलके काथ तथा कन्क से मूर्वी शतावरी चेति काथैहि पालिकैरिमैः॥
सिद्ध घृत चित्तविकार, उन्माद, मद, मूर्छा, कल्याणकस्य चाङ्गेन चैतसं नाम तद्धृतम्।।
ज्वर और मिरगीका नाश करता है । सर्ववेतोविकाराणां शमनं परमुच्यते ॥
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