Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम्
द्वितीयो भागः।
[१४७]
शीतल जलके साथ सेवन करनेसे शीतला (माता) । (१७१९) चित्रकादि क्षारः (ग.नि.।उदर.) नहीं निकलती।
चित्रकः पिप्पली चैव सैन्धवं लवणं वचा। (१७१७) चित्रकचूर्णयोगः (वृ.नि.र.रक्तपि.) | घृतं चेति समांशानि कटाहे संवृतं दहेत् ॥ जयेन्नासाश्रितं रक्तं लीढं वा क्षौद्रपावकम् ॥ पिबेत्क्षीरेण तं क्षारं मद्येनोष्णोदकेन वा । ___ चीतेके चूर्णको शहदमें मिलाकर चाटनेसे प्लीहानमर्शःशुलानि गुल्मं चैव प्रणाशयेत् ॥ नकसीर (नाकसे रक्तस्राव होना) बन्द होती है। चीता, पीपल, सेंधानमक, बच और घी (१७१८) चित्रकप्रयोगाः
| समान भाग लेकर (अधकुटा करके एकत्र मिलाकर) (वा. भ. । उत्त. स्था. । अ. ३९) एक कढ़ावमें भरकर भस्म कर लीजिए।' छायाशुष्कं ततो मूलं मासं चूर्णीकृतं लिहन् । इस क्षारको दूध, मद्य या उष्ण जलके साथ सर्पिषा मधुसपिभ्यां पिबन्वा पयसा यतिः ॥ सेवन करनेसे तिल्ली, बवासीर, शूल और गुल्मका अम्भसा वा हितानाशी शतं जीवति नीरुजः। नाश होता है। मेधावी बलवान्कान्तो वपुष्मान्दीप्तपावकः ॥ (मात्रा--१ माशा) तैलेन लीढो मासेन वातान्हन्ति सुदुस्तरान् । (१७२०) चित्रकादिचूर्णम् मूत्रेण श्वित्रकुष्ठानि पीतस्तक्रेण पायुजान् ॥ | ( भा. प्र. । म. ख. आम. ) ___चीतेकी जड़को छायामें सुखाकर महीन चूर्ण चित्रकेन्द्रयवापाठाकटुकातिविषाभयाः। करके घी अथवा घी और शहद या दूध अथवा आमाशयोत्थवातघ्नं चूर्ण पेयं मुखाम्बुना ॥४५ जलके साथ एक मास पर्यन्त सेवन करने और चीता, इन्द्रजौ, पाठा, कुटकी, अतीस और ब्रह्मचर्य तथा पथ्य पालन करनेसे मनुष्यको रोग । हैडके चूर्णको मन्दोष्ण जलके साथ सेवन रहित १०० वर्षकी आयु प्राप्त होती है तथा मेधा, करनेसे आमाशयगत वायुका नाश होता है । बल, कान्ति और अग्निकी वृद्धि होती है। चित्रकादिचूर्णम् ( र. र. । शू. ) ___ चीतेकी जड़के चूर्णको १ मास पर्यन्त तैलके | रसप्रकरणमें देखिए । साथ सेवन करनेसे समस्त भयङ्कर वातरोग, (१७२१) चित्रकादिचूर्णम् गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे सफेद कोढ़ और (ग. नि. यो. र. । अति०) तक्रके साथ सेवन करनेसे अर्श ( बवासीर ) नष्ट चित्रकं पिप्पलीमूलं वचा कटुरोहिणी। होती है।
पाठा वत्सकवीजानि हरीतकी महौषधम् ।। १ उपरोक्त समस्त वस्तुओंको कढ़ावमें डालकर उसके ऊपर दसरा कढ़ाव या अन्य पात्र ढककर भट्टीपर चढ़ा दीजिये और जब समस्त चूर्ण जल जाय तो अग्नि जलानि बन्द कर दीजिए। तत्पश्चात् स्वांग शीतल होने पर निकालकर बोतलोमें भरकर मजबूत कार्क लगाकर रखिए कि जिससे ममीका प्रभाव न पड़े।
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