Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अवलेहप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[१६५ ]
पीपल, गोखरु, कटेली, कटेला, काकडासिंगी, एवं स्वरक्षय ( गलाबैठना ) उरोरोग, हृद्रोग, भूईआमला, मुनक्का, जीवन्ती, पोखरमूल, अगर, वातरक्त, तृषा, मूत्राशय और शुक्राशय गत रोग हर, गिलोय, ऋद्धि, जीवक, ऋषभक, कचूर, मोथा, नाशक तथा स्मरणशक्ति, मेधा, कान्ति अनारोग्य पुनर्नवा ( बिसखपरा ), मेदा, इलायचीके बीज, आयु और समस्त इन्द्रियोंका बल, बढ़ानेवाली तथा सफेद चन्दन, कमलपुष्प, विदारीकन्द, बांसेकी अग्निंवर्द्धक और वायुको अनुलोमन अरनेवाली है । जड़, काकोली और काकनासा १–१ पल (५-५ इसको सेवन करनेसे अत्यन्त वृद्ध च्यवनऋषिः तोले ), आमले ५०० नग, लेकर सब चीजोंको तरुण हो गए थे। १ द्रोण ( १६ सेर ) पानीमें पकाइये और पकते इसे कुटिप्रावेशिक रसायन प्रयोगके विधासमय उसमें आमलोंको कपड़ेमें बांधकर डाल नानुसार सेवन करनेसे वृद्ध मनुष्य तरुण हो दीजिए। जब ४ सेर पानी शेष रहे तो काथको जाते हैं। छान लीजिए, और आमलोंकी गुठली अलग करके इसे ऐसी मात्रानुसार सेवन करना चाहिए मथकर खद्दरके कपड़ेमें को छान लीजिए। कि जिससे क्षुधा कम न हो जाय । तत्पश्चात् आमलेकी इस पिट्ठीके दो भाग करके टिप्पणी---ऋद्विके अभावमें खरैटी, जीवकके १ भागको ६ पल ( ३० तोले ) धीमें और | अभावमें गिलोय, ऋषभकके अभावमें बंसलोचन दूसरे भागको ६ पल तिलके तैलमें भून लीजिए और मेदाके अभावमें विदारी कन्द लेना चाहिए । तत्पश्चात् यह दोनों पिट्टियां, उपरोक्त काथ और काकोली न मिले तो शतावर डालनी चाहिए । ५० पल स्वच्छ मिश्री एकत्र मिलाकर (कलईदार काकनासाकी जगह अनेक वैद्य ' काकजंघा' तांबेकी कढाई में ) मन्दाग्नि पर पकाकर अवलेहके | डालते हैं, क्योंकि यह क्षय नाशक है । मिश्री समान गाढ़ा कर लीजिए । और फिर उसमें ४ ५ सेर डालनेसे अधिक स्वादिष्ट बनता है। . पल बंसलोचन, २ पल पीपल और १-१ पल आमले ५०० नंग न लेकर ५०० तो० दालचीनी, इलायची, तेजपात तथा नागकेसरका (६। सेर ) लिए जायं तो ठीक है क्योंकि सब चूर्ण मिला दीजिए । और बिल्कुल शीतल हो
आमले बराबर वजनके नहीं होते । जानेपर ६ पल शहद मिलाइये । बस-च्यवन पाश च्यवन प्राशकी साधारण मात्रा ३ माशेसे १ तैयार है।
तोले तक है। यह रसायन (जरा, व्याधिनाशक ) जखमी, ॥ इति चकारादिलेहप्रकरणम् ॥ क्षीण, और वृद्ध पुरुषोंके शरीरकी वृद्धि करनेवाली,
१ चिकित्सा कलिकामें क्वाथ्य द्रव्योंमें मुद्गपर्णी, माषपर्णी, पीपल, अगर, हरे, पुनर्नवा और काकनासाके स्थानमें क्षीरकाकोली, महामेदा, बुद्धि, और त्रिफला लिखा है ।
वृहद्योगतरङ्गिणीमें क्वाथ्य द्रव्योंमें जीवन्ती, अगर, ऋद्धि, ऋषमक, काकोली और मेदा कम हैं ।
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