Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
पाषाण कृत्रिम और देखने में शङ्खके समान होता है तथा पीला पर्वतसे उत्पन्न होता है और रंगमें दाडिमके समान होता है ।
( वृ. नि. र. र. रा. सुं. । संग्रह ) सुरभिपारदडिङ्गलचित्रकान् गगनभ्रष्टसुटङ्कणजातिकान् । कनकबीजमथातिविपाकटु
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यह दोनों ही विष हैं और रस कर्ममें प्रयुक्त होते हैं । (१५८७) गौरीपाषाणशोधनम् ( आ. वे. प्र. । अ. ११ ) कम्पिल्लश्चपलो गौरीपाषाणो नवसादरः । हजारोथ सिन्दूरं साधारणरसाः स्मृताः ।। साधारणरसाः सर्वे मातुलुङ्गार्द्रकाम्बुना । त्रिवारं भाविताः शुष्का भवेयुर्दोषवर्जिताः ॥
कमीला, चपल, संखिया, नौसादर, अम्बर और सिन्दूर उपरस ( साधारण रस ) कहलाते हैं ।
समस्त उपरस बिजौरे नींबू और अदरक रस में घोटकर सुखा लेनेसे शुद्ध हो जाते हैं । १५८८) ग्रहणिकामदवारणसिंहः
हरीत भस्मसुदीप्यकान् ॥ गरलबिल्वकलिङ्गकपित्थकान् नलदमोचकदाडिमघातकीः । जलदशाल्मलिपिच्छयुतान्समान्
द्वितीयो भागः ।
कनकसाम्यमफेनमिदं दृढम् ॥ कनकपत्ररसैः परिमर्दयेत्
मरिचमानवी मधुसंयुता । विनिहरेद्ग्रहणीगदमुत्कटं ज्वरयुतामसतीं च विषूचिकाम् ॥
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अग्निमान्यमथ शुलविबन्धं
गुल्म शूलमथ पाण्डुममन्दम् । सरुधिराममतीव समुत्कटं ग्रहणिकामदवारणकेसरी ॥
शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारा, हिङ्गुल, चीता, अभ्रक भस्म, सुहागेकी खील, जावित्री, शुद्ध धतूरे के बीज, अतीस, त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ) जङ्गी हैड़ (पीली हर्र ) की भस्म, अजवायन, विष, बेलगिरी, इन्द्रजौ, कैथ के फलका गूदा खस, केलेका फूल, अनारकी छाल ( अथवा कली ) धायके फूल, नागरमोथा, सेंभलका गोंद, और अफीम । इन सब ओषधियोंको समान भाग लेकर धतूरेके पत्तोंके रस में खरल करके काली मिर्च के समान गोलियां बनाकर शहद के साथ सेवन करनी चाहियें। इस " ग्रहणीकामदवारण सिंह रस से ज्वरयुक्त दुश्चिकित्स्थ संग्रहणी, दुष्ट विसूचिका, अग्निमांद्य, शूल, अनेक प्रकारके गुल्म, कठिन पाण्डुरोग, और रक्तसंयुक्त आमातिसार नष्ट होता है।
(१५८९) ग्रहणीकपर्द पोटली (र.सा.सं.प्र.) कपर्दतुल्यं रसकन्तु गन्धकं
लौहं मृतं टङ्कणञ्च तुल्यम् । जयारसे नैकदिनं विम
चूर्णेन संवेष्टय पुटेच भाण्डे || ददीत तत्पोटलिकाभिधानं
Tagधानां ग्रहणीं निहन्ति ॥ कौड़ी भस्म, पारद, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म और सुहागेकी खील समान भाग लेकर एक दिन भांगके रस में घोटकर टिकया बनाकर सुखा