Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[११४ ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[गकारादि
दीप्तं स्निग्धं निर्दलं मसृणं वै
श्री गोरक्षनाथ कथित इस गोरक्षवटीको मुखमें मूत्रच्छायं स्वच्छमेतत्समश्च । रखनेसे स्वरभङ्ग ( गला बैठना ) रोग अवश्य नष्ट एभिर्लिङ्गैर्लक्षितं वै गरीयः
होता है। ___ सर्वेषु कार्येषु नियोजनीयम् ॥ (१५८५) गौडो रसः ( र. र.। शू० ) विच्छायं वा चिप्परं निष्पमं च
शुद्धं मूतं मृतं तीक्ष्णं गन्धं भागसम्मितम् । रूक्षं चाल्पं चाहतं पाटलेन । चूर्ण तयोर्भावयित्वा शतावर्या रसेन च ॥ निर्भार वा पीतकाचाभयुक्तं
धाच्या गुडूच्यास्त्रिदिनं खल्वे मद्य पुनःपुनः। __ गोमेदं चेदीदृशं नो वरिष्ठम् ॥ गुञ्जाचतुष्टयं खादेत् घृतेन मधुना पयः॥ .
गोमेद मणि एक श्रेष्ट रत्न है जो गोमेदके अनुपानं पिबेत्याज्ञः सर्वशूलनिवारणम् । समान लाल होता है। स्वच्छ गोमूत्रके समान वर्ण वातरोगान् पित्तरोगान् कफरोगान् सुदुस्तरान्।। (रंग) वाली गोपेदमणि शुद्ध कही जाती है। त्वग्दोषदेहकार्यश्च दाहमुग्रं निवारयेत् ।
जो गोमेदमणि चमकीली, स्निग्ध, दल गौडो रसः समुद्दिष्टो बलवर्णाग्निवर्द्धनः ॥ ( परत ) रहित, मसृण (स्पर्शमें चिकनी साफ),
शुद्ध पारद शुद्ध गंवक और तीक्ष्ण लोह गोमूत्रसदृश रंगवाली, स्वच्छ और समान ( जो
| भस्म १-१ तोले लेकर दोनोंको शतावरी, आमला टेढी तिरच्छी न हो ) होती है वह उत्तम और और गिलोय के रसमें पृथक् पृथक् ३-३ दिन तक समस्त कार्योंके लिए उपयुक्त होती है।
खरल कर लीजिए। धुंधली, चपटी, तेज ( ज्योति ) हीन, रूक्ष,
इसे ४ रत्तीकी मात्रानुसार शहद और धीमें हल्की, और पीले काचके समान रंगवाली गोमेद
मिलाकर दूधके साथ सेवन करनेसे सर्व प्रकारके मणि निकृष्ट होती है।
शूल; भयङ्कर वातज, पित्तज, और कफजरोग, (१५८४) गोरक्षवटी
त्वग्दोष, शरीरकी कृशता, और प्रबल दाह नष्ट ( वृ. यो. त.। त. ८१; र. रा. सुं.; वै. र.;
होती तथा बल, वर्ण और अग्निको वृद्धि होती है। यो. र.; र. चं. । स्वरभेद०)
| (१५८६) गौरीपाषाणभेदाः रसभस्मार्कलोहस्य भावितस्य त्रिसप्तधा ।
( आ. वे. प्र. । अ. १०) क्षुद्राफलरसैमुद्गतुल्या कार्या वटी शुभा ॥ गौरीपाषाणकः प्रोक्तो द्विविधः श्वेतपीतकः । मुखस्था हरते सर्व स्वरभङ्गमसंशयम् । . | श्वेतः शङ्कसदृक्पीतो दाडिमाभः प्रकीर्तितः ।। ४२ गोरक्षनाथैर्गदिता स्वरभेदे कृपालुभिः ॥ श्वेतः कृत्रिमकः प्रोक्तः पीतपर्वतसम्भवः।
रससिन्दूर, ताम्र भस्म और लोह भस्म समान विषकृत्यकरौ तौ हि रसकर्मणि पूजितौ॥४३॥ भाग लेकर कटेलीके फलके रसमें २१ बार धोटकर, गौरीपाषाण ( संखिया ) दो प्रकारका होता मंगके समान गोलियां बना लीजिए। - है (१) श्वेत और (२) पीला । श्वेत गौरी
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