Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[११२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[गकारादि
-
महान्याधि, और पित्तविकार आदि समस्त रोगोंका वातिकं पैत्तिकं गुल्मं श्लैष्मिकं रौधिरन्तथा। नाश होता है।
गहनानन्दनाथोक्तरसोयं गुल्मनाशनः ।। (१५७५) गुल्मवज्रिणी वटी
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, शुद्ध गूगल, (र. रा. सुं.; र.सा. सं; रसें. चि.म.; र. चं.। गुल्म.) पीपल वृक्षकी छाल, निसोत, पीपल, सोंठ, कचूर, रसगन्धकताम्रञ्च कांस्यं टङ्कणतालकम् ।
धनिया और जीरा एक एक पल (५ तोले) और प्रत्येकं पलिकं ग्राह्य मर्दयेदतियत्नतः॥
धतूरेके बीज (शुद्ध) आधा पल लेकर प्रथम पारे तद्यथाग्निबलं खादेद्रक्तगुल्मप्रशान्तये।
और गन्धककी कजली बना लीजिए, तत्पश्चात् निर्मिता नित्यनाथेन वटिका गुल्मवत्रिणी॥
अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर गोघृतमें धोटकर गुल्मप्लीहोदराष्ठीलायकृदानाहनाशिनी।
२-२ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए । कामलापाण्डुरोगनी ज्वरशूलविनाशिनी ॥ __गहनानन्दनाथोक्त इस रसकी नित्य २ गोली
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, ताम्रभस्म, कांसी खाकर पश्चात् अद्रकका उष्ण रस पीनेसे तिल्ली, भस्म, सुहागेकी खील और शुद्ध तबकी हरताल
जिगर, कामला, उदररोग, शोथ, तथा वातज, १-१ पल लेकर सबको भलीभांति खरल कर
पित्तज कफज और रक्तज गुल्मका नाश होता है। लीजिए।
(१५७७) गुह्यरोगारिरसः श्रीनित्यनाथ विरचित गुल्मवनिणी नामक (र. चं.; र. का. धे. । स्त्री.) इन गोलियों को अग्निबलोचित मात्रानुसार सेवन पारदगन्धकटकानेकैकान् पभिनीकन्दम् । करनेसे गुल्म, तिल्ली, अष्ठीला, यकृत् आनाह
चतुरोभागान् खल्वे लिङ्गीद्रावण मर्दितं त्रिदिनम् (अफारा) कामला, पाण्डु, ज्वर और शूलका नाश मधुना भावितमीशः स्त्रीनृणां गुह्यजान् रोगान् । होता है । (मात्रा १-२ रती)
वल्लचतुष्टयमानं युक्तो दुग्धेन वासरत्रितयात् ॥ (१५७६) गुल्मशार्दूलो रसः ।
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और सुहागेकी खील (र. रा. सुं.; र. चिं. म.; र. चं.; ध.; र. १-१ भाग तथा पद्मिनी कन्द (कमलिनीकी जड़) ___सा. सं. गुल्म.)
४ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना रसं गन्धं शुद्धलौहं गुग्गुलोः पिप्पलं पलम् । लीजिए तत्पश्चात् अन्य दोनों ओषधियोंका चूर्ण त्रिवृता पिप्पली शुण्ठी शठी धान्यकजीरकम ॥ मिलाकर सबको ३ दिन तक शिवलिङ्गीके रसमें प्रत्येकं पलिकं ग्राह्यं पलाधै कानकं फलम्।
खरल करके एक भावना शहदकी दीजिए। संचूर्ण्य वटिका कार्या घृतेन वल्लमानतः ॥ - इसे ३ दिन तक चार वल्ल (८ रत्ती)की वटीद्वयं भक्षयेच्चाईकोष्णाम्बुपिवेदनु । मात्रानुसार दूधके साथ सेवन करनेसे स्त्री पुरुषोंके हन्ति प्लीहयकृतगुल्मकामलोदरशोथकम् ।। । गुह्य रोग नष्ट होते हैं।
For Private And Personal