Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[११० ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[गकारादि
शुद्ध पारद, लोहभस्म, ताम्रभस्म, शुद्ध वरकी (१५७१) गुल्मकुठारो रसः (वै. र. । गुल्म.) हरताल और शुद्ध गन्धक २-२ तोले तथा मोथा, पारदं टङ्कणं गन्धं त्रिफला व्योषतालकम् । स्याह मिर्च, सोंठ, पीपल, गजपीपल, हरं, बच विषं तानं च जैपालं भृङ्गस्वरसमर्दितम् ॥
और कूठका चूर्ण १-१ तोला तथा यवक्षार १० गुञ्जामात्रा वटी कार्या आर्द्रकस्य रसान्विता। तोले लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना गुल्मे कुठारकःमोक्तः सर्वगुल्मनिवारणः॥ लीजिए तत्पश्चात् अन्य ओषधियां मिलाकर खरल शुद्ध पारद, सुहागेकी खील, शुद्ध गन्धक, कीजिए और फिर पित्तपापड़ा, मोथा, सोंठ, त्रिफला ( हर्र, बहेड़ा, आमला ) त्रिकुटा ( सोंठ, अपामार्ग, और पाठा (पाठ) के काथकी पृथक् मिर्च, पीपल) शुद्ध हरताल, शुद्ध मीठा तेलिया, पृथक् भावना देकर चूर्ण कर लीजिए। ताम्र भस्म और शुद्ध जमालगोटा समान भाग
इसे ४ रत्तीकी मात्रानुसार हरेके काथके | लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना लीजिए साथ सेवन करनेसे पित्तज, कफज, सन्निपातज
तत्पश्चात् अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर और विशेषतः वातज गुल्मका नाश होता है। भांगरेके स्वरस में खरल करके रत्ती रत्ती भरकी (१५७०) गुल्मकुठाररसः
गोलियां बना लीजिए। ( यो. र.; वृ. नि. र. । गुल्म.)
इन्हें अद्रकके रसके साथ सेवन करनेसे सर्व नागवङ्गाभ्रकं कान्तं समं तानं समांशकम् । प्रकारके गुल्म रोग नष्ट होते हैं । जम्बीरस्वरसैघष्टवा वटी गुञ्जाप्रमाणिका॥ (१५७२) गुल्मगजारातीरसः' मधुनाऽऽद्रेकनीरेण क्षारयुग्मेन सेविता।
(र. का. धे.; वृ. नि. र. । गुल्म.) अजीर्णमाम गुल्मं च हृत्पार्योदरशूल के ॥ | सूतगन्धकणापथ्यातुत्थारग्वधकान्दृढम् । नाम्ना गुल्मकुठारोप्यं सर्वगुल्मान् व्यपोहति। मर्दयेद्वनिदुग्धेन माषाई खादयेत् दिनम् ।।
नाग (सीसा) भस्म, बंग भस्म, अभ्रक भस्म, | गुल्मोदरगजारातिर्नाम्ना भैरवनिर्मितः । कान्तलोह भस्म, और ताम्र भस्म बराबर बराबर | स्त्रीणां जलोदरं हन्ति पथ्यं शाल्योदनं दधिः।। लेकर जम्बीरी नीबूके रस में धोटकररत्ती रत्ती भरकी | चिश्चाफलं रसं चानुपानमस्मिन्प्रयोजयेत् ॥ गोलियां बना लीजिए।
शुद्ध पारा, शुद्र गन्धक, पीपल, हर्र, शुद्ध इस गुल्मकुठार रसको अद्रकके रस, शहद, । नीलाथोथा, और अमलतासका गूदा समान भाग जवाखार और सजीखारके साथ सेवन करनेसे | लेकर प्रथम पार गन्धककी कजली बना लीजिए आमाजीर्ण, गुल्म, हृच्छूल, पार्श्वशूल और उदरशूल- और फिर अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर थोहका नाश होता है।
रके दूधमें अच्छी तरह घोटिए ।
१ वृहद्योगतरंगिणी तरंग ८९ में कथित गुल्मारि रसका भी लगभग यही प्रयोग है, उसमें केवल तुत्थ नहीं है।
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