Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[११८]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
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( व्यवहारिक मात्रा-४ रत्ती ।) निष्क (प्रत्येक ५ माशे) और कौड़ी भस्म ५ निष्क (१५९५) ग्रहणीकपाटरसः
तथा शुद्ध गन्धक २ निष्क लेकर प्रथम पारे (र. रा. सुं.; र. का.; र. चं. । ग्र.; यो. त. । त. | गन्धककी कजली बनाकर अन्य समस्त ओषधियों
२२; वृ. यो. त. । त. ६७ ) का चूर्ण मिलाकर जम्बीरी नीम्बूके रसमें घोटकर शुद्धाहिफेनवलिमूतकपर्दभस्म । टिकिया बना लीजिए और सम्पुटमें बन्द करके हालाहलोषणविशुद्धसुवर्णबीजैः। गजपुटको आधे भार (२॥ मन ) उपलों (कण्डों)
अम्भोधिपतिकरशैलधराष्टविंश से भरकर उसके बीचमें उस पुटको रख कर अग्नि त्यशैविचूर्णिततमैग्रहणीकपाटः ॥ लगा दीजिए । स्वांग शीतल होने पर औषधको बल्लो:स्य हन्ति मधुना सह जीरकेण । | चूर्ण कर लीजिए। भुक्तोऽतिसारमपि संग्रहणीमुदग्रम् ।। इसे ( ८ रत्तीकी मात्रानुसार शहद में मिलाआमं विपाच्य सहसा जनयत्यवश्यं | कर ) सेवन करनेसे ग्रहणी, गुल्म, क्षय, कुष्ठ और वैश्वानरं जठरमातिनमार्तिभाजम् ।। प्रमेह रोग नष्ट होता है।
शुद्ध अफीम, ४ भाग शुद्ध गन्धक, १० । (१५९७) ग्रहणीकपाटरसः(वज्रकपाटरसः) भाग; शुद्ध पारा, २ भाग कौड़ी भस्म, ७ भाग | (र. चं.; र. सा. सं.; यो. र.; र. रा. सुं. । ग्र.; बछनाग विष ( शुद्ध), १ भाग, स्याह मिर्च, ८ र. मं. । अ० ६; रसें. चि. म. । अ० ९ भाग, शुद्ध धतूरेके बीज २० भाग लेकर महीन
र. का. धे.) चूर्ण कर लीजिए।
| तारमौक्तिकहेमानि सारश्चैकैकभागिकाः । ___ इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार शहद और ( ३ | द्विभागो गन्धकः मूतस्त्रिभागो मर्दयेदिमान् ।। माशे ) जीरेके चूर्ण के साथ सेवन करनेसे भयङ्कर | कपित्थस्वरसैर्गाढं मृगशृङ्गे ततः क्षिपेत् । अतिसार और ग्रहणी तथा आम नष्ट हो कर | पुटेन्मध्यपुटेनैव तत उद्धृत्य मर्दयेत् ॥ अग्निदीप्त होती है।
बलारसैः सप्तवेलमपामार्गरसैविधा। (१५९६) ग्रहणीकपाटरसः ( र.सा.सं.।ग्र.) लोभ्रं प्रतिविषामुस्तधातकीन्द्रयवामृता ॥ तुल्यं कान्तं रसं तालं माक्षिकं टङ्कणन्तथा। प्रत्येकमेतत्स्वरसैर्भावना स्यात्रिधा त्रिधा । सपादनिष्कं प्रत्येकं पञ्चनिष्कं वराटकम् ॥९०॥ माषमात्रो रसो देयो मधुना मरिचैस्तथा ॥ द्विनिष्कं गन्धकं सर्व पिष्ट्वा जम्बीरजैद्रवैः।। हन्यात्सर्वानतीसारान् ग्रहणी सर्वजामपि । अर्धभारकरीषेण पुटितं भस्मशोभनम् ॥ कपाटो ग्रहणीरोगे रसोयं वह्निदीपनः॥ प्रदद्यादग्रहणीगुल्मक्षयकुष्ठप्रमेहके ॥ ९१॥ चांदी भस्म, मुक्ता भस्म, स्वर्ण भस्म, और
__कान्तिसार लोहभस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध लोह भस्म १-१ भाग तथा शुद्ध गन्धक २ भाग हरताल, सोनामक्खी भस्म, और सुहागा सवा सवा और शुद्ध पारद तीन भाग लेकरे सबको एकत्र
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