Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
द्वितीयो भागः ।
[ ९३ ]
तस्यां च गन्धकं दध्यात्स्थाने स्थाने च चूर्णितम् । (१५१९) गन्धकजारणम् (यो. र . )
तदधः पारदं दध्याद् द्वितीयं खण्डमूर्ध्वगम् ॥ कुर्याच्च घण्टिकायुक्तं द्वयमेकत्र योजयेत् । चुल्लिकायां तदा दध्यात्स रसं तं समुन्नतम् ॥ संहतं मुद्रितं गाढं कचलिप्तं महोत्तमम् ।
मृतकुण्डे निक्षिपेन्नीरं तन्मध्ये च शरावकम् । मृत्कुण्डे च पिधानाभं मध्ये मेखलया युतं ॥ क्षिप्त्वा च मेखलामध्ये संशुद्धं रसमुत्तमम् । रसस्योपरि गन्धस्य रजो दद्यात्समांशकम् ।। तस्योपरि शरावञ्च भस्ममुद्रां प्रदापयेत् । तस्योपरि पुढं दद्याच्चतुभिंगोमयोपलैः ॥ एवं पुनः पुर्नर्गन्धं षड्गुणं जीयते बुधैः । गन्धे जीर्णे भवेत्तस्तीक्ष्णात्रिः सर्वकर्मसु ॥
सहं बलिं दत्वा पश्चाच्चाति सुभक्तितः ।। गुरुपूजादिकं कुर्यात्तथा च रसपूजनम् । अधोवह्निर्विधातव्यो मध्ये चोर्ध्वे समुद्गतः ॥ गन्धको जायेते शुद्धो यावच्छक्यस्तु सत्वरम् । रसस्तं ग्रसते गन्धं शीघ्रमेव न सशयः ॥ अनेन विधिना स्रुतो गन्धक ग्रसते नवम् ॥
मिट्टी के कुण्डे में पानी भरकर उसमें ढक्कन की भांति एक ऐसा शव रख दीजिए कि जिसमें मेखला (कगूरा - चारों ओर उभरा हुवा कनारा) हो । पानी इस शरावके किनारों के बराबर होना चाहिए और सावधानी रखनी चाहिए कि उसके अन्दर पानी न गिरने पावे | अब उस शराव में शुद्ध पारद रखकर उसके ऊपर समान भाग गन्धक चूर्ण रखकर एक दूसरे शरावेसे ढककर सन्धिको उपलोंकी राखसे बन्द कर दीजिए । और फिर उसके ऊपर ४ अरने उपले (कण्डे) रखकर उनमें अग्नि लगा दीजिए । स्वांग शीतल होनेपर पुनः पारदके समान गन्धक डालकर इसी प्रकार पुट लगाइये । इस प्रकार षड्गुण गन्धक जारण करनेसे पारद तीक्ष्णाग्नि हो जाता है अर्थात् फिर वह स्वर्णादि धातुओं को भली भांति ग्रहण (अपने में लय) कर सकता है ।
वि. सू. - ऊपरवाला शराव नोचेके शरावकी मेखलापर जम जाना चाहिए कि जिससे उक्त मेखलाके भीतर हवा जानेको स्थान न रह जाय । (१५२०) गन्धकजारणम् (यो. र.) तप्तखल्वेर संक्षिप्त्वा अधश्चुल्लचास्तुषाग्निभिः । स्तोकं स्तोकं क्षिपेगन्धमेवं वै षड्गुणं चरेत् ॥
सेंधे नमक के दो टुकड़ों को खोखरा करके दो कोसी बना लीजिए और उनको तिलकी पिठ्ठी के बीच में रखकर उसके ऊपर मिट्टीका लेप कर दीजिए । तत्पश्चात् उनमें से एक कटोरी में नीचे ऊपर शुद्ध गन्धकका चूर्ण बिछाकर बीचमें पारा रख दीजिए । और फिर दूसरी कटोरी उसके ऊपर उल्टी रखकर दोनोंके मुख मिलाकर कपर मिट्टी करके भली भांति बन्द कर दीजिए और उसके ऊपर काचका पोत चढ़ा कर अनि सहन शील बना लीजिए ।
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अब बलि देकर और गुरु, तथा पारद पूजन करके इस सम्पुटको अग्निपर चढ़ा दीजिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि कपरमिट्टी आदि करते समय या अग्निपर चढ़ाते समय सम्पुट उल्टा न हो जाय। इस क्रिया पारदमें शीघ्रातिशीघ्र गन्धक जारण हो जाता है और पारदमें पुनः नवीन गन्धकभक्षणकी शक्ति आ जाती है।
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