Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[८९]
सीसाभस्म, बंग ( रांग ) भस्म, ताम्र भस्म, इस · गदमुरारि रस , से यथेच्छ विरेचन शुद्धहिंगुल, शुद्ध मनसिल, शुद्ध नीलाथोथा, ताम्र | हो कर सन्निपात और अन्य समस्त रोग नष्ट भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण भस्म और होते हैं। खपरिया भस्म समान भाग लेकर आकके दूध (से, वि.-प्रातःकाल १ रत्तीसे २ रत्ती घोटकर एक गोला बना लीजिए और फिर उसे तक शीतल जलके साथ खाएं और बारबार शीतल ऊपर नीचे सेंधानमक रखकर दो शरावोंमें बन्द जल पीते रहें । जब दस्त बन्द करना चाहे तो करके गजपुट में फेंक दीजिए । तत्पश्चात् निकाल- मिश्रीका शर्बत पीलें । कर अद्रक बासा और संभालके रसमें एक एक (पथ्य-घृतयुक्त भात । ) दिन घोट लीजिए।
(१५०६) गदमुरारिरसः (सें.सा.सं.। वर.) ___इसे तुलसीके रस और पीपलके चूर्णके साथ
रसवलिशिललोहताम्राणि तुल्यासेवन करनेसे पसलीका शूल, अग्निमांद्य, अरुचि,
न्यथ सदरदनागं भागमेतत् प्रदिष्टम् । सन्निपात, हृद्रोग, गुल्म, प्रमेह, कफवातविकार,
भवति गदमुरारिश्चास्य गुञ्जाद्वयं वै ज्वर और रक्तपित्त रोग नष्ट होता है ।
क्षपयति दिवसेन प्रौढमामज्वराख्यम् ।। (१५०५) गदमुरारिरसः
शुद्ध पारा, गन्धक, हरताल, लोह भस्म, ताम्र (इच्छाभेदी) (र. सा. सं. । ज्वर.)
भस्म, शुद्ध हिंगुल. ( शंगरफ) और नाग (सीसा) रसबलिगगनार्क शुद्धतालं विषश्च ।।
भस्म, समान भाग लेकर ( अद्रकके रसमें ) त्रिफलात्रिकटुकमेतत्टङ्कणं भृङ्गमेभिः॥
| घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। सममिह जयपालोद्भूतचूर्ण विमर्थ ।
यह " गदमुरारि" रस प्रबल आमज्वरको द्विनिशमनिशमेतद्धृङ्गराजोत्थवारा ॥
| भी एक ही दिनमें नष्ट कर देता है । भवति गदमुरारिः स्वेच्छया भेदकोयम् । हरति सकल रोगान् सन्निपातानशेषान् ॥
(१५०७) गदमुरारिरसः (र.रा. सु.।उ.ख.व.) शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, |
हिङ्गलञ्च विषं व्योषं टङ्गणं नागरा भया । शुद्ध हरताल, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिफला ( हर्र, ‘जयपालसमायुक्तं सयो ज्वरविनाशनम् ॥ बहेडा, आमला ) त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल) शुद्ध शंगरफ, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिकुटा सुहागेकी खील और दालचीनी १-१ भाग तथा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), सुहागेकी खील, सोंठका शुद्ध जमालगोटेका चूर्ण इन सब ओषधियोंके बरा- चूर्ण, हर्रका चूर्ण और शुद्ध जमालगोटा समान बर लेकर प्रथम पारे गन्धकको घोटकर कजली भाग लेकर ( पानीसे पीसकर २-२ रत्तीकी बना लीजिए और फिर अन्य ओषधियोंका चूर्ण गोलियां बना लीजिए ।) मिलाकर दो दिन तक निरन्तर भांगरेके रसमें घोटिये। इससे वर शीघ्र नष्ट हो जाता है ।
भा० १२
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