Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदग
सम्यक्त्व का महत्व :
सम्यक्त्व के पालन के लिए आचार्य उमास्वाती ने तत्वार्थ सूत्र में तीन रत्न को सम्यक्त्व माना है। वह हैं सम्यक्त्व दर्शन (सही श्रद्धा) कण्यक ज्ञान, सम्यक् चारित्र (सही ढंग से उस पर चलना) इसी लिए उनका कथन है : “सम्यक्त्व दर्शन ज्ञानचारित्राणी मोक्ष मार्ग"
यह तत्व था जिसे मैंने श्रावक होने के नाते गुरू धारणा के समय स्वीकार किया। सात कुव्यसन का त्याग श्रावक का पहला लक्षण है। जैसे मुनि कहलाना कठिन है वहां श्रावक कहलाना भी सरल नहीं। इन तीनों मुनियों ने मुझें सम्यक्त्व का रत्न प्रदान किया। मुझे गुरू के रूप में आचार्य श्री तुलसी के नाम से गुरू दीक्षा प्रदान की गई। मेरे जीवन में सव नया था। सम्बकत्व् की महिमा जैन धर्म में कितनी है कि इस की परीक्षा की कभी कभी हो जाती है। सम्यक्तवी धर्म पर दृढ़ रहता है। सव धमों का सम्मान करते हुए अपने धर्म का पालन करना उसका लक्षण है, गुण है। श्रावक धर्म का क्षेत्र वहुत विशाल है। इस के लिए बहुत रारतों से गुजरना पडता है। सम्यकत्व पर मिथ्यात्व कैसे परीक्षा लेता है, इस विषय में एक घटना का उल्लेख करना हो काफी है।
“किसी समय अंवड नाम का सन्यासी, अपने भेष में प्रभु महावीर के दर्शन करने आया। गणधर गौतम् इन्द्रभूति ने उस का सम्मान किया। प्रभु महावीर का उपदेश सुनने के बाद वह जब जाने लगा ता प्रभु महावीर एक धर्मलाभ अपनी श्राविका सुलझा के नाम दिया। वह सन्यासी हैरान था कि इस श्राविका में ऐसा कौन सा गुण है कि प्रभु महावीर ने इसे धर्म लाभ प्रेषित किया है। अंबड सन्यासी बहुत सी
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