Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम सब कुछ मात्र २१ गाथाओं में वर्णन किया गया है।
३२वें अध्ययन का नाम अप्रमाद स्थान है। इस अध्ययन में अशुभ विचारों के त्याग और अशुभ कार्य छोड़ने के लिए निर्देश दिया गया है। अशुभ कार्यों में लगे रहना प्रमाद है। इस अध्ययन में राग द्वेष को कर्म का मूल वीज कहा गया है। इन्द्रीयों में विषयों पर संयम रखने की आज्ञा दी गई है। इस अध्ययन में १११ गाथाएं हैं।
३३वां अध्ययन का नाम कर्म प्राकृति है। इस में जैन धर्म के कर्म सिद्धांत का वर्णन किया गया है। इस में र प्रकार के कमों का भेद और प्रभाव का वर्णन किया गया है।
३४वें अध्ययन लेश्या का वर्णन है। लेश्या जैन धर्म का परिभाषित शब्द है। छहलेश्याओं में वर्णन में प्रभु महावीर ने बताया है कि यह लेश्या का स्वभाव कैसा है ? रंग कैसा है,? आत्मा का कर्म के साथ संबंध स्थापित कैसे करती है ? किस प्रकार कर्मवंधन का कारण बनती है। इस अध्ययन की ६१ गाथाएं सव विस्तृत रूप से मिलता है।
३५वें अध्ययन का नाम अनगार मार्ग गति है। इस अध्ययन में साधु को उसका धर्म पालने के लिए विस्तार से प्रेरित किया गया है। साधु राग द्वेष रहित हो कर जन्म मरण की इच्छा छोड़ दे। इच्छाओं का निग्रह करके संयम की
ओर अग्रसर हो। संसरा कर अर्थ कामना है, वासना है, कामना और वासना से मुक्त होना, जन्म व मरण से मुक्त होन है। निर्वाण है। यह निर्वाण ही सिद्ध अवस्था है। इस अध्ययन में २१ गाथाएं हैं।
अंतिम अध्ययन ३६वां है। इस का नाम जीव-आजीव विभिक्त है। जैसा इस के नाम से वर्णन है इस में जीव आजीव की विस्तार से व्याख्या की गई है। इस में जीव के भेद, आजीव के भेद का विस्तार से वर्णन है। इस
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