Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
मन्दिर भगवान महावीर के समय का है। इस वात की पुष्टि इस मन्दिर के पास खण्डित मन्दिर के खण्डहर व प्राचीन प्रतिमाओं से होती है। वर्तमान मन्दिर राजकपूर जैसे शिल्प पर आधारित छोटा सा मन्दिर है। इस में प्रभु महावीर की भव्य प्रतिमा है। मैने पूछा “ इस मन्दिर का नाम मुच्छैला महावीर कैसे पड़ा ? न तो महावीर के टें थीं। फिर क्या कारण है कि इसे मुच्छैला महावीर कहते हैं ?"
पुजारी ने मेरी जिज्ञासा शांत करते हुए कहा "यह क्षेत्र भी राणा कुंभा के क्षेत्र में पड़ा था। यह मन्दिर तब अपनी परम उतकृष्ट सीमा पर था. यहां साहुकारों की भव्य वरती थी। यहां का राजा राणा कुम्न प्रभु महावीर का नक्त था । उसने प्रभु महावीर की इस प्रतिमा की पूर्ण सेवा भक्ति का व्रत ले रखा था। वह हर रोज मन्दिर में प्रभु महावीर की पूजा भक्ति करता था। एक दिन वह मन्दिर में पुजा के लिए न आ सका। पुजारी ने प्रभु का पवित्र गंधोधक ले कर राज दरवार में आए। पूजारी की आंखों की दृष्टि कमजोर थी। उनकी मुंछों का एक वाल उस गंधोधक में गिर पड़ा। पुजारी वाल गिरने को देख न सका ।
पुजारी जी ने अपना लाया गंधोधक राजा को दिया। राजा ने गंधोधक में जव वाल देखा तो राजा कुम्भा को हैरानी हुई। राजा ने पुजारी को व्यंग करते हुए कहा "पुजारी जी क्या बात है प्रभु की प्रतिमा के क्या मूंछें उग आईं हैं, जो गंधोधक में वाल आ रहे हैं ?"
वात साधारण थी। पर राजा की बात सुन कर पुजारी को गहरा आघात पहुंचा। पुजारी आखिर पुजारी था । वह अपने प्रभु का अपमान कैसे सहन कर सकता था ? वह मन्दिर में वापिस लौटा। आकर उस ने प्रभु के समक्ष गुप्त अभिग्रह गुप्त प्रतिज्ञा धारण कर लिया। वह अभिग्रह था कि
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