Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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जब तक प्रभु की प्रतिमा के मूर न प्रगट हों, तब तक अन्न जल का त्याग करता हूं। इस विचित्र गुप्त अभिग्रह को पुजारी के इलावा कोई नहीं जानता धा। कई दिन यह अभिगृह चलता रहा। पुजारी का अभिगृह पूरा करने के लिए राजा व श्रावकों ने भरसक प्रयत्न किए पर अभिगृह पूरा नहीं हो रहा था। पुजारी जी की शरीरिक रिथित विगडती जा रही थी।
भक्त की लाज उस का भगवान है। यह ऐसा रिश्ता है जो सहज समर्पण का रिश्ता है। इस रिश्ते में कुछ
भी घटित हो सकता है। ऐसा ही चमत्कार पुजारी के साथ हुआ। हुआ यूं, एक दिन राजा राणा कुम्भा प्रभु महावीर की इस प्रतिमा के दर्शन करने आए। उन्होंने जव प्रभु महावीर की प्रतिमा के दर्शन किए तो उन्हें प्रभु महावीर की प्रतिमा के उपर दादी-मृठं अंकित हुई नजर आई। राणा को अपनी भूल का एहसास हुआ। राणा ने पुजारी जी से कहा 'महाराज आप की पूजा करते भक्ति साकार हो गई है। मैंने आज प्रभु महावीर की पूजा करते उनके दाड़ी-मूंछे देखी हैं। आप को मेरे मजाक के कारण जो आघात पहुंचा है उसके लिए आप मुझे क्षमा करें। मैंने प्रभु महावीर की इस प्रतिमा का स्पष्ट चमत्कार देख लिया है। आप की भक्ति की शक्ति को मैं नमस्कार करता हूं। इस भक्ति के कारण इस प्रतिमा का अतिशय देखने का मूझे अवसर मिला है। आप प्रभु महावीर की भक्ति में डूवे सच्चे भक्त हैं। हम आप पहचान नहीं सके। मेरा व्यंगय कटु था। जिस के कारण आप की आत्मा को आघात कप्ट पहुंचा। इस का जो प्राश्चित आप देवें, मैं ग्रहण करता हूं।"
राजा राणा कुम्भा ने पुजारी से क्षमा मांगी। पुजारी ने कहा “गनन ! आप ज्यादा कप्ट अनुभव न करें।
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