Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 478
________________ 3-आश्या की ओर बढ़ते कदम ३२वीं देहरी पर श्री कृष्ण द्वारा कालिया ' दमन का दृश्य अंकित है। एक और श्री कृष्ण पाताल लोक में शेष नाग पर शयन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यमुना तट पर गेंद व गुल्ली डंडा खेल रहे हैं। ३.वी देहरी में १६ हाथ वाली सिंह वाहिनी विद्यादेवी की कलात्मक मूर्ति है। ४२वी देहरी के गुम्बज में मयूरासन रावती, गजवाहिनी लक्ष्मी, कमल पर लक्ष्मी, गरुड़' पर शंखेश्वरी देवी की मनमोहक प्रतिमाएं यात्रीयों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। यह सूक्ष्म कला का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। ८४वी देहरी में नक्काशीदार तोरण और परिसर युक्त श्री वारिपण तीर्थकर की शाश्वत प्रतिमा विराजमान है। ४६वीं से अड़तालसवीं देहरी के वाहर गुम्बज में १६ हाथ वाली शीतला, सरस्वती और पद्मावती देवीयों की चमत्कारी प्रतिमाएं विराजमान हैं। मन्दिर का सर्वोत्म कलात्मक भाग उसका रंग मंडप है। १२ अलंकृत स्तम्भों, और कलात्मक सुन्दर तोरणों पर आश्रित, बड़े गोल गुम्बज के हाथी, घोडे, हंस, नर्तक आदि की ग्यारह गोलाकार मालाएं और झूमरों के रफटिक गुच्छे लटक रहे हैं। प्रत्येक स्तम्भ के उपर वाद्य वादन करती ललनाएं हैं और उनके उपर भिन्न भिन्न प्रकार के वाहनों पर सुशोभित १६ विद्यादेवीयां हैं। रंग मंडप से उपर की झांकी में ना समकोण आकृति वाली प्रत्येक अलंकृत छत पर विभन्न पर की खुदाई इस मन्दिर की सुन्दरता में वृद्धि करती है। १९६१ में विमलवाही की हस्तिशाला का जीणोद्धार हुआ था। मूल गर्भ गृह में प्रभु आदिश्वर नाथ की मनोरम प्रतिमा अपना ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। गुढ़ मण्डप में ध्यानारथ प्रभु पार्श्वनाथ की प्रतिमा इस मन्दिर की 478

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