Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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रथा का आर व
कदम
- भूमि पर मन्दिर में विराजित प्रतिमाएं यहां अंग्रेज शासकों ने दिगम्बर समाज को दी थीं, जो छोटे व वडे दिगम्बर मन्दिर में विराजित हैं। दोनों मन्दिरों में कलात्मक प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। दोनो समाज की धर्मशाला है। श्वेताम्बर धर्मशाला में भोजन की व्यवस्था है। दिगम्बर धर्मशाला आधुनिक सुविधा युक्त है।
मैंने प्रयाग तीर्थ की यात्रा की। हिन्दु व जैन * दोनों परम्पराओं के प्रसिद्ध मन्दिर की यात्रा की। प्रभु ऋपभदेव की केवल्यज्ञान कल्याणक भूमि देखी। विशेष रूप से वटवृक्ष जो प्रभु ऋपभदेव की याद दिलाता है, उसके दर्शन किए।
श्री रत्न पूरी तीर्थ : - यह तीर्थ फैजावाद, वाराणसी मार्ग पर गांव में रिथत है। अयोध्या से २५ किलोमीटर दूर है। यह तीर्थ बहुत प्राचीन है। तीर्थ पर धर्मनाथ जी के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवल्यज्ञान कल्याणक इसी भूमि पर हुए। वह एक दिगम्बर मन्दिर है। जहां प्रभु धर्मनाथ की मूलनायक के रूप में पूजा होती है।
रत्नपूरी से मैं सपरिवार वाराणसी गया। मैंने सभी वन्दनीय स्थलों को पुनः अपने परिवार सहित देखा, जिनकी मैंने अपने धर्मभाता रविन्द्र जैन से यात्रा की थी।
व राणसी, काशी, मुगलसराय एक ही स्टेशन के नाम हैं। ___ काशी कला, धर्म, संस्कृति का केन्द्र है। उर प्रदेश का जैन
धर्म में प्रमुख स्थान है। यह क्षेत्र अनेकों शंकरों की जन्मभूमि है। इसी क्रम में मेरा अगला स्थल अयोध्या था।
यह एक इतफाक़ था कि मुझे पुनः वाराणसी __ और इस के आस पास यात्रा का सौभाग्य मिल रहा था।
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