Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
सहित ६ भव्य व सुन्दर प्रतिमाएं हैं। इसका निर्माण १५८२ में हुआ था । मन्दिर के वाह्य भाग की छतों पर आयरिश चित्रकारी क्षतिग्रस्त सी हो गई है। यह मन्दिर यहां निर्मित सब से छोटा मन्दिर है। यह मन्दिर प्रभु महावीर के अहिंसा के संदेश को हर कोण से प्रस्तुत करता है । यही मन्दिर सादगी में भी अपना प्रभाव छोड़ता है ।
विमल वसहीं - इतिहास :
देलवाड़ा परिसर के इस भव्य परिसर का निर्माण महाराजा भीमदेव के मंत्री, धर्मपारायणा, सेनापति सेट विमलशाह ने करवाया था। अपने जीवन का बड़ा हिस्सा उन्होंने श्रमण संस्कृति व कला को समर्पित कर दिया । इस मन्दिर के शिल्पी थे, महान शिल्पकार कीर्तिधर । उनके निर्देशन में इस कला निधि का निर्माण सं १०३१ में सम्पन्न हुआ। इस भव्य जिनालय की प्रतिष्ठा आचार्य वर्धमान सूरि के कमलों से सम्पन्न हुई। करीव १५०० शिल्पी मन्दिर का निर्माण किया । सेट विमलशाह श्रमिकों को हमेशा प्रसन्न रखते थे, इस की झलक इन मन्दिरों का हर पत्थर कहता है । इस मन्दिर पर १८५३ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं खर्च आई । यह उस जमाने की वात जव शिल्पीयों व मजदूरों को बहुत ही कम श्रम मिलता था। आचार्य श्री के सानिध्य में प्राण प्रतिष्ठां का कार्य मंगलमय ढंग से सम्पन्न हुआ ।
सेट विमलशाह के वंशज पृथ्वीपाल ने जीर्णोद्धार सं १२०४ से १२०६ तक इस मन्दिरों की देहरीयों का निर्माण कर इस मन्दिर को चार चांद लगाए । अपने पूर्वजों की यश कीर्ति को चिरस्थाई रखने के लिए उन्होंने विशाल हरितशाला बनाई। इस हरितशाला के द्वार पर विमलशाह को अश्वारूढ़ प्रतिमा के रूप में भव्य रूप से दिखाया गया है। सन १३६१
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