Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 474
________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम के आस पास फैले परिसर में शिल्पांकित मां सरस्वती, अविका, लक्ष्मी, चक्रेश्वरी, पद्मावती, शीतला आदि देवीयों की प्रतिमाएं शिल्पकला के अदभूत नमूने हैं। शिल्प कला की वारीकी देखने के लिए इन मूर्तियों के नाखून और नासाग्र आदि का अवलोकन ही काफी है । . - इन मन्दिरों में शिल्पीयों ने अपनी छैनी के जौहर दिखाए हैं। मन्दिर की सभी प्रतिमाएं कटोर संगमरमर में उत्कीर्ण की गई हैं। इस से स्वयं ही देखने वालों को शिल्पीयों के श्रम का आभास होने लगता है । मन्दिर के उत्कीर्ण को गहराई से देखने पर आभास होता है। कि उस काल के शिल्पीयों की मुख्य अभिरूचि आलंकारिक अपेक्षा मूर्तिकार ने देव प्रतिमा के अंकन में विशेष सिद्ध-हरतता प्राप्त कर ली थी। इन देव प्रतिमाओं में नायको, विद्याधरों, अप्सराओं, तथा जैन धर्म के अन्य देवी देवताओं का अंकन सम्मिलित है। इन का निर्माण गुम्वजों, स्तम्भों, तोरणों में हुआ है। कला व शिल्प के भण्डार यह जैन मन्दिरों में जैन तीर्थकरों का चित्रण स्वाभिक है पर मन्दिर के निर्माताओं सूत्रधारों और शिल्पीयों ने सम्पूर्ण हिन्दू संस्कृति का शिल्प प्रस्तुत करके अपनी धर्म के प्रति उदारता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। यही नहीं, यहां भारतीय संस्कृति के विभिन्न अंगों को प्रस्तुत किया गया है। अपने प्रेनी का इंतजार करती प्रिवेसी को यहां स्थान दिया गया है। यहां कुल छह मन्दिर हैं। इनमें पांच श्वेताम्बर, एक दिगम्बर है। इन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है । महावीर स्वामी का मन्दिर : जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर को समर्पित इस सादे मन्दिर में भगवान महावीर 474

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