Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- स्था की ओर से कदम हुई। उसे समय यहां श्री देवधिगणि क्षमाश्रमण सहित पांच सौ आचार्य इकट्ठे हुए। लम्बे विमर्श हुए। पिछली माधुरी वाचना को सामने रखा गया। साधू की भूलने की शक्ति को ध्यान में रख कर समरत आगमों को ताडपत्र लिखने का निर्णय लिया गया। यह क्रान्तिकारी कदम था। श्री संघ ने । ताड पत्रों पर ५०० आचायों से आगम लिखाने का कार्य शुरू करवाया। यह इतिहासक कदम था जिस के कारण हमें आज समरत आगम उपलब्ध होते हैं। जब ताड़ पत्र जीर्ण शीणं होने लगे तो कागज पर आगम लिखने की परम्परा चली। आज भी हाध से आगम लिखने की परम्परा तेरापंथ समाज में प्राप्त होती है। अब तो लिपि के सुन्दर नमूने भी आगमों के रूप में प्राप्त होते हैं।
वल्लभी में आगम लिखने का इतिहासक वि. सं. ५११ से शुरू हुआ। इससे पहले तो सारा साहित्य श्रुत परम्परा के रूप में उपलब्ध होता था। दल्लभी नगरी उपनी प्राचीन धरोहर को समेटे हुए है। यहां का जैन मन्दिर भव्य है जहां प्रभु ऋषभदेव की प्रतिमा मूलनायक के रूप में दर्शन होते हैं। प्रतिमा पद्यासन में स्थित है।
इसी मन्दिर के नीचे के भाग में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण एवं पांच सौ आचायों की प्रतिमाएं कलात्मक ढंग से बनाई गई हैं। सभी आचार्य ताडपत्र पर शास्त्र लिने प्रदर्शित किए गए हैं। वह मन्दिर इतिहासक मन्दिर हैं। यह तीर्थ सरस्वती उपासकों के लिए पूज्नीय हैं! गुमनाम आचायों के प्रति शृद्धा से झुक गया। सारे भारतवर्ष में शायद ही यह एक मात्र स्थान जहां इतनी प्रतिमाओं के माध्यम से जैन इतिहास को जिंदा रखा है। वह श्री संघ साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने ऐसे चमत्कारी आचायों के मन्दिर का निर्माण करवाया। इस मन्दिर को देख कर धर्म के प्रति आस्था जागती है। प्रभु
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