Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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-3યા છા ગોર વહ બ साध्वीयों का आना विपूल मात्रा में रहता है। पालिताना रथावर व जंगम तीर्थ की दृष्टि से पुण्यभूमि है। यह जंगम तीर्थ साधु साध्वीवों के दर्शन का लाभ भी प्राप्त होता है।
पालीताना नगर के करीव ५ किलोमीटर के क्षेत्र में विशाल धर्मशालाओं का समूह है। छोर छोर पर पावन जिनालय हैं। पर असल तीर्थ तो तलाहटी से शुरू होता है। जेसे पहले कहा जा चुका है कि यहां ८६१३ मन्दिरों में ३३ हजारों जिन प्रतिमाएं हैं। पालीताना तीर्थ के १०८ नाम हैं। पर्वतमाला पर निर्मित व टोंकों में मोतीशाह की टोंक भव्यता की जीती जागती मिसाल है। पालीताना को शाश्वत तीर्थ माना जाता है। यहां पर अनंत भव्य जीवों ने निर्वाण रूपी ज्योति को प्रज्वल्लित कर कर्म बंधन को तोडा। प्रभु ऋषभदेव की रमृति में वरसी तप के पारणे होते हैं। इस दृष्टि हस्तिनापुर और पालीताना दोनों ही स्थानों पर भव्य मेले लगते हैं।
पालीताना वास्तव में पादलिप्तपूर का अपभ्रंश हुआ है जो तीर्थ का वर्तमान नाम है। प्रभु ऋषभदेव ने वर्तमान काल के तीसरे आरे. में हुए। पालीताना तीर्थ उनसे पहले भी थी। प्रभु ऋषभेदव के पुत्र भरत चक्रवर्ती से लेकर मंत्री कमांशाह के नाम इस जीर्णोद्धार में शामिल हैं। फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी को छ: कोस की प्रदक्षिणा लगाई जाती है जिस में एक लाख से अधिक यात्री भाग लेते हैं।
शत्रुजय तीर्थ के समान शत्रुजय नदी की महिमा भी गंगा से ज्यादा जैन ग्रंथों में उल्लेखित की गई है। यह नदी शत्रुजय पहाड़ी पर स्थित यह मन्दिरों का नगर पालीताना शहर के दक्षिण में है। यहां के मंन्दिर दो जुड़वां चोटीयों पर निर्मित हैं। यह पहाड समुंद्र की सतह से ६०० मीटर की उंचाई पर है। ३२० मीटर लम्बी इस प्रत्येक चोटी पर यह
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