Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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=ામ્યા છી ગોર હો જન્મ फुरमान आचार्य जिनचन्द्र व आचार्य हीराविजय को दिए। इस तीर्थ को कर से मुक्त किया। इस तीर्थ पर वने मन्दिरों । को देखकर हैरानी होती है कि इतने बड़े पत्थर इतने उंचे पहाड़ पर कैसे शिल्मी द्वारा पहुंचाए गए होंगे। पालिताना यात्रा :
मैं भावनगर देखने के बाद शाम को पालिताना पहुंचा। वहां मैं पंजावी धर्मशाला में टहरा। अगली सुवह हमारी यात्रा शुरू होनी थी। यह यात्रा आरथा की यात्रा थी। जैसे मैंने पहले ही कहा था कि यह मन्दिर नगर मन्दिरों का राजा है। मन्दिरों का शहर है। पुण्य उदय से ही ऐसे तीर्थ के दर्शन होते हैं।
मैं व मेरा परिवार हम तीर्थ पर पहुंच कर श्रृद्धा से गद्गद् हो उठा। इस तीर्थ की यात्रा से ज्ञान का प्रकाश राम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। मिथ्यात्व सहित १८ पापों का नाश होता है। मुझे रववं अनुभव हुआ, मैंने पाया कि यहां का कण कण भगवान है। यह साधु, साध्वी, श्राविक, श्राविकाओं के झुंड प्रति सुवह तीर्थ नायक के दर्शन करने निकल जाते हैं। इस तीर्थ का सर्वप्रथम उल्लेख मेरी दृष्टि में अंतकृतदशांग सूत्र में आया है। इस तीर्थ की यात्रा मैंने एक रात्रि के आराम के बाद शुरू की। पहले पहाड के नीचे देखने योग्य स्थल देखे। व्यवस्था अच्छी है। पंजाबी धर्मशाला में पंजावी सहधर्मी के दर्शन हुए। गुजराती भाषा मुझे कटिन नहीं लगी। वैसे गुजराती हिन्दी भाषा समझ लेते हैं।
सुवह उटे, सूर्य देव के दर्शन से पहले पर्वत राज की चढ़ाई शुरू हुई। यह यात्रा कुछ उसी प्रकार की थी जैसे रामेद शिखर की थी। पर इस यात्रा में एक विशेषता थी वह पहाड पर दही का भोजन । कितने ही दही वेचने वाले
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