Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 468
________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम मन्दिर निर्मित है। यह पंक्ति दूर से देखने में अंग्रेजी के अक्षर एस ( S) के आकार की दिखाई देती है। विभिन्न आकार प्रकार के इन बहुसंख्यक मन्दिरों में विराजित जिन प्रतिमाएं संसार को अहिंसा व शान्ति का संदेश देती हैं । सं. १६५० में सेट धनपत सिंह लक्ष्मीपत सिंह द्वारा बनाए गए। इस मन्दिर में ५२ देवालय है। मार्ग में छोटी मोटी अन्य देहरीयां हैं जिनमें चक्रवर्ती भरत, भगवान नेमिनाथ के गणधर व भगवान आदिनाथ, पार्श्वनाथ की चरण पादुकाएं हैं। यह वारिखिल्ल, नारद, राम, भरत, शुक परिव्राजक, धान थावच्चा पूत्र शेलकसूरि, जाली, मयाली तथा अन्य देवी देवताओं की देहरीया हैं। वीच मार्ग में राजा कुमार पाल कुण्ड और साला कुंड आते हैं । साला कुंड के पास जिनेन्द्र ट्रंक है । जिस में ज्यादा गुरु मूर्तियां व देव मूर्तियां हैं। इन में माता पद्मावती देवी की प्रतिमा कलात्मक दृष्टि से सुन्दर है । हम आगे बढ़ते हैं तो वहां रारता विभाजित होता है । आगे हाथी पोल में प्रवेश करने से पहले भव्य मन्दिर से पहले रामपोल और छीपसी पोल है। आगे हाथी पोल में प्रवेश करते समय सूरजकुण्ड, भीम कुण्ड, एवं ईश्वर कुण्ड दिखाई देते हैं। १. पहली टॉक का निर्माण सेठ नरशी केशव जी ने सं १८८१ में कराया था। इस भव्य टोंक में भगवान शांतिनाथ जी की भव्य प्रतिमा है 1 २. दूसरी खरतरवसही टोंक है। इसे चौमुख टोंक भी कहते हैं। यह पर्वत के उतरी शिखर पर निर्मित है। शत्रुंजय में निर्मित टूंकों में यह सर्वोच्च ट्रंक है। काफी दूर से ही इस मन्दिर का उंचा शिखर दिखाई देता है। इस ट्रंक का नव निर्माण सं. १६७५ में सेट सदासोम ने करवाया था । मन्दिर में आदिश्वर प्रभु की चौमुख जीके रूप में चार विशाल 468

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