Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 459
________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम के अनेकों रूप मिलते हैं। गुजरात में जैन मन्दिरों के लिए पूजा उपयोगी वस्तुएं बनती हैं। मुनियों व साध्वीयों के उपयोगी उपकरण मिलते हैं। अव मैंने उपयोगी सामान लिया। टैक्सी से अगले गंतव्य स्थान पालिताना की ओर सपरिवार रवाना हुआ। सारा रास्ता गुजराती संस्कृति की झलक हर कदम पर मिलती है। श्री वल्लभीपूर तीर्थ : अमहदावाद से ५३ किलोमीटर दूरी पर वल्लभीपूर तीर्थ है। जैन श्वेताम्बर परम्परा में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। किसी समय वह वैभवपूर्ण सम्पन्न नगर था । जैन आगमों की अंतिम वाचना से यह सम्पन्न हुई। पहली वाचना आचार्य स्थूलभद्र की प्रधानगी में पाटलीपूत्र में सम्पन्न हुई। इस से पहले भी एक वाचना का उल्लेख खण्डगिरी के कुमारगिरी पर्वत पर राजा मेघ वाहन खारवेल द्वारा सम्पन्न कराने का वर्णन वीर वि० सं० २०० में पाया जाता है। प्रभु महावीर के वाद जो पूर्व साहित्य की परम्परा थी इस का वर्णन नदी सूत्र में विस्तार से मिलता है । उस समय तक पूर्व परम्परा के १४ पूर्व श्रुतधर आचार्य को याद थे। आर्य स्थूलिभद्र का काल मोर्य काल का है। आचार्य स्थूलिभद्र का परिवार नंद के मन्त्री पद पर आसीन रहा। उस समय पाटली पूत्र साजिशों का केन्द्र बन गया । आचार्य स्थूलिभद उस के बड़े भाई व वहिनों ने दीक्षा ग्रहण की। इस समय पहला १२ वर्ष का अकाल पड़ा। कुछ साधु भद्रवाहु से १४ पूर्वो का ज्ञान सीखने नेपाल गए। पर उन्होंने साधु को यह ज्ञान न दिया । फिर मगध संघ ने आज्ञा दी कि आचार्य स्थूलभद्र आदि को वाचना दें। आचार्य स्थूलभद्र नेपाल गए। सभी साधु पूर्वोों का अध्ययन 459

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