Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
आप तो प्रभु भक्त हैं। मैं भी प्रभु का साधारण भक्त हूं । प्रभु प्रतिमा का एक भक्त द्वारा अपमान एक भक्त कैसे सहन कर सकता था ? इसी कारण मैंने यह अभिग्रह किया। आप के कारण मेरा यह गुप्त अभिगृह फलित हुआ । इस तीर्थ की व जैन धर्म की प्रभावना हुई। आप तो नमित्त मात्र हैं। यह घटना तो होनी थी सो हो गई। आप व्यर्थ चिंता मत करें। आप के कारण मेरी भक्ति सफल हुई ।"
इस प्रकार मुच्छैला तीर्थ और इसकी प्रतिमा के चमत्कार संसार में पहुंचे । अव संसार के कोने कोने से इस चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन करने भक्तजन आते हैं। इस प्रकार पुजारी ने हमें इस तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास सुनाया । जैसे पहले कहा गया है कि यह मन्दिर राणकपूर मन्दिर से आकार में छोटा जरूर है पर भीतरी कला दृष्टि से राणकपुर मन्दिर का प्रभाव इस गर्भ गृह व प्रवेश द्वार में देखा जा सकता है। इस मन्दिर की छत भी जैन शिल्प का उतकृष्ट नमूना है। इस मन्दिर की छत के उपर भी १६ विद्यादेवीयां अलंकृत हैं। प्रभु महावीर की भव्य प्रतिमा भी कलात्मक है । मन्दिर के बाहर निकलते ही कुछ खण्डीत प्राचीन प्रतिमाएं मन्दिर परिसर में रखी हुई हैं। लगता है पहले इस स्थान पर कोई भव्य मन्दिर रहा होगा जिस की समरत प्रतिमाएं हैं व मन्दिर किसी कारण विध्वंस का शिकार हो गए। मन्दिर की यात्रा चरम सुख देने वाली है ।
मन्दिर व गांव प्रदूषण मुक्त, शान्त स्थान पर है। गांव छोटा है यहां के ग्रामीण प्रभु महावीर की श्रद्धा से पूजा अर्चना करते है । छोटी सी धर्मशाला में पर्याप्त संख्या में यात्री यात्रा करते रहते हैं। भोजनशाला में हर समय यात्रीयों को भोजन उपलब्ध होता है। इस मन्दिर व धर्मशाला की देखभाल भी एक पेठी करती है ।
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