Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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::પરચા હી :ોર લક : हम मुच्छेला महावीर तीर्थ की यात्रा सम्पन्न कर वापिस सड़क पर आए। कुछ किलोमीटर चलने पर गोमती का चोराहा आया। हम ने जीप नाथ द्वारा से ली थी और वापस भी वहां तक थी। पर किसी की सलाह पर हम गोमती के चोराहे पर ही उतर गए। यहां से हमें जयपूर के लिए सीधी बस मिलती थी। सो हम वहां रुक कर वस का इंतजार करने लगे।
कुछ ही समय वाद एक वस द्वारा हम जयपूर पहुंचे। तब रात्रि पूरी व्यतीत हो चुकी थी। यह यात्रा पूरी रात्रि की थी। हम जयपूर सुवह ४ वजे पहुंचे। जयपूर से देहली दिन में पहुंच गए। रास्ते में हम ने अलवर देखा, यहां प्राचीन महल, किले प्रसिद्ध हैं। पत्थर का व्यापार मूर्ति कला का यहां काफी कार्य होता है।
दिल्ली में कुछ समय रुक कर स्नान किया। फिर देहली से बस पकड़ कर वापिस मण्डी गोविन्दगढ़ आ गए। शान हो चुकी थी। मेरे धर्म भाता रविन्द्र जैन भी मालेरकोटला चले गए। यह यात्रा हमारे लिए जैन इतिहास, कला व साहित्य के प्रति जागृति पैदा करने वाली थी। इस यात्रा ने हमें तीर्थकरों की परम्परा के प्रति श्रद्धा को नया आयाम व वल दिया। यह हमारी संयुक्त यात्राएं थीं। अगले प्रकरण में अपनी उन यात्राओं का वर्णन करूंगा जो मैंने अपने परिवार व रिश्तेदारों के साथ सम्पन्न की।
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