Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 444
________________ उसमें ध्वनि तरंग के विज्ञान को स्थापित किया गया है। गुम्बज के एक छोर पर एक शंख वना हुआ है जिस में प्रसारित होने वाली ध्वनि से सम्पूर्ण गुम्बज तरंगित दिखाया गया है। मन्दिर के वर्गाकार गर्भ गृह से अध्ययन प्रारम्भ किया जए तो मन्दिर की सुस्पष्ट क्रमवद्धता दिखाई देती है। यह मन्दिर पश्चिमी पहाडी की ढलान पर स्थित अपनी अनुपम छटा विखेर रहा है। मन्दिर के पश्चिमवर्ती भाग को इस दिशा से कुछ उंचा बनाया गया है। लगभग ६२ गुण. ६० मीटर लम्वे चौड़े क्षेत्रफल की ढलान का चारों ओर की दीवार मन्दिर की उंचाई की. वाह्य संरचना में मुख्य भूमिका रखती है। मन्दिर के चार प्रवेश मंडम दो तल के हैं और तीन ओर की भितियों से घिरे हैं। मनोहारी प्रवेश मण्डप में सबसे मडा नंडप पश्चिम की ओर है जो मुख्य प्रवेश मण्डप है। मन्दिर के परिसर में छह देवकुलिकाएं हैं। जिन पर छोटे छोटे शिखर हैं। यह शिखर मन्दिर की शोभा को वढ़ाते हैं। मन्दिर का शिखर तीन मंजिल का है। मन्दिर के उतंग शिखर पर लहराता ध्वजा संसार को अहिंसा व शांति का उपदेश देता है। पूर्णिमा की चांदनी में वह मन्दिर अपनी अलौकिक घटा विखेरता है। इस मन्दिर के अतिरिक्त यहां तीन मन्दिर और हैं। यह सभी मन्दिर कला का खजाना हैं। इन में दो मन्दिर २३वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित हैं। एक मन्दिर सूर्य देव का प्राचीन मन्दिर है। भगवान पार्श्व नाथ के मन्दिर की कला, भगवान ऋषभदेव के मन्दिर से कम नहीं। इस मन्दिर का निर्माण कारीगरों ने अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए वची खुची सामग्री से किया था। कारीगरों की प्रनु 441

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