Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 442
________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम धरणाशाह व शिल्पकार दीपा की प्रतिमाएं हैं जो इतिहास कहती हैं । बाईं ओर सेठ जी की प्रतिमा और दाई और शिल्पी दीपा की प्रतिमा है। यह प्रतिमाएं भारतीय इतिहास कला संस्कृति की धरोहर हैं। मूल मन्दिर में १६ देवीयों की प्रतिमाएं शोभायमान हैं। दीपा की प्रतिमा स्थापित कर सेट धरणीशाह ने जैन समाज को गरीब अमीर की भेद रेखा समाप्त करने का संदेश दिया है। गर्भ ग्रह के बाहर निर्मित तोरण, शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहां पहुचंते ही भक्ति का सागर हृदय में उछलने लगता है। इसी मूल गर्भ गृह में भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा है। यह प्रतिमा ६२ फुट की कार्योत्सर्ग पद्मासन में परिकर सहित है । मन्दिर के तीनों ओर भी इसी तरह की तीन प्रतिमाएं हैं। इसी कारण इस का चर्तुमुख जिनप्रसाद है । गर्भ गृह की आंतिरक सरंचना स्वस्तिकार कक्ष के रूप में की गई है। मूल मन्दिर के बाहर रक्षक देव की चमत्कारिक प्रतिमा स्थापित है। गर्भ गृह के बाहर दो विशाल घंटे हैं। जिनमें से एक को नर व दूसरे को मादा कहा जाता है। यह भेद घंटनाद करने से पता चलता है। घंटे में ऐसी आवाज आती है जैसे कोई नवकार मंत्र के सार शब्द ओम की ध्वनि कर रहा हो । मूल मन्दिर की बाई ओर एक विशाल वृक्ष है । जिसे रायण वृक्ष कहा जाता है। वृक्ष के नीचे प्रभु ऋषभदेव के चरण शत्रुंजयतीर्थ की याद दिलाते हैं। वृक्ष के पास एक सहरत्रकूट नामक स्तम्भ है जो अधूरा है। इस के पूरा करने के अनेकवार कोशिश की गई पर पूरा नहीं हो पाया। सहरत्रकूट स्तम्भ के सामने एक हाथी पर प्रभु ऋषभदेव की माता विराजमान है। माता मरूदेवी सरलामा थीं। वह अपने पुत्र के वातसत्य भरी रहती थी। एक बार प्रभु अयोध्या 442

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